एक तरफ केंद्र और तमाम राज्य सरकारें महिलाओं की बेहतरी के लिए चलाई जा रही योजनाओं को बढ़ा चढ़ाकर पेश कर रहे हैं और दूसरी तरफ महिलाओं की सेहत से जुड़ी चिंताजनक रिपोर्ट आ रही है। हरियाणा, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल जैसे तमाम राज्यों में मातृ मृत्यु दर की स्थिति पहले से खराब होती जा रही है।

मातृ मृत्यु दर में बढ़ोतरी का ये आंकड़ा किसी एनजीओ के जरिए नहीं आया है बल्कि रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में सामने आया है। MMR के आंकड़ों का मतलब होता है शिशु को जन्म देते वक्त एक लाख माओं में कितनों की मृत्यु होती है। अगर 2016 से 2018 के आंकड़ों को देखा जाए तो बंगाल में मातृ मृत्य अनुपात में 11 प्रति लाख की वृद्धि हुई जिसके चलते एमएमआर 98 से बढ़कर 109 पर पहुंच गया। इसी तरह हरियाणा में 5% की वृद्धि हुई और आंकड़ा 91 से बढ़कर 96 प्रति लाख पहुंच गया।

उत्तराखंड में भी मातृ मृत्यु अनुपात में 2% का इजाफा हुआ। यहां पर आंकड़ा 101 पर पहुंच गया। अगर राष्ट्रीय आंकड़ों को देखा जाए तो 2016 से 2018 के मुकाबले 2017 से 2019 में एम एम आर के राष्ट्रीय आंकड़ों में 8.9 फ़ीसदी की गिरावट आई, जिसके बाद भारत में एमएमआर 103 पर पहुंच गया था। एक तरफ तो राष्ट्रीय अनुपात 113 से घटकर 103 हुआ मगर दूसरी तरफ बंगाल, उत्तराखंड और हरियाणा के बढ़ते आंकड़े चिंता का विषय हैं।

2030 तक सतत विकास के लक्ष्यों के तहत एम एम आर को 70 पर सीमित रखने का लक्ष्य रखा गया था। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए अभी इस आंकड़े को पाने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं पर काफी ध्यान देने की जरूरत है। केरल महाराष्ट्र, तेलंगाना, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, झारखंड और गुजरात ने बेहतर प्रदर्शन किया है। इन छह राज्यों में केरल की स्थिति सबसे अच्छी है।

अगर उन राज्यों की बात की जाए जिनकी स्थिति राष्ट्रिय औसत से भी खराब है तो उनमें असम पहले नम्बर पर है जहां MMR 205 है। उत्तर प्रदेश में ये 167,मध्य प्रदेश में 163 छतीसगढ़ और पंजाब में 114 प्रति लाख दर्ज की गई है। 2016-18 के मुकाबले इन राज्यों के आकड़ो में गिरावट आयी है पर फिर भी ये राष्ट्रीय औसत से बहुत ज्यादा है जो की चिंता का विषय है।

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