अदनान अली-

‘मनरेगा के आवंटन में 9% का इज़ाफा, 60,000 करोड़ रुपए का मिला आवंटन,’

‘मनरेगा का बजट बड़ा, 60,000 करोड़ रुपए का मिला आवंटन’।

वर्ष 2019 का बजट आ चुका है और मनरेगा योजना को लेकर इस तरह की हेडलाइन मीडिया में देखी जा रही है लेकिन क्या ये सच है या चालाकी से फैलाया जा रहा झूठ?

मनरेगा का बजट बढ़ाकर 60,000 करोड़ रुपए कर दिया गया

ये बात बजट भाषण के दौरान संसद में वित्त मंत्री पियूष गोयल ने बोली और मीडिया उसे वैसे ही दिखाने लगी। जबकि मनरेगा का बजट बढ़ा नहीं बल्कि घटा है।

पिछले वित्त वर्ष 2018-19 में मनरेगा के लिए बजट में 55,000 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था। लेकिन ये पैसा मनरेगा के लिए कम पड़ गया था और इस कारण सरकार ने साल के बीच में 6,084 करोड़ रुपए और दिए थे। इस तरह मनरेगा का पिछले वित्त वर्ष का पूरा बजट 61, 084 करोड़ रुपए रहा था। जबकि इस साल उसके लिए 60,000 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है तो बजट 84 करोड़ रुपए पिछले साल से कम है।

दरअसल, नोटबंदी और जीएसटी के बाद बेरोज़गारी बहुत ज़्यादा बढ़ी है। सरकार के इन दोनों ही क़दमों ने असंगठित क्षेत्र की कमर तोड़ दी और भारत में 90% लोग असंगठित क्षेत्र में ही काम करते हैं। असंगठित क्षेत्र से तात्पर्य छोटी फैक्ट्रियों, मील, बुनकर, दुकाने, मज़दूर आदि से है।

ऑल इंडिया मेन्युफेक्चार ऑर्गेनाइज़ेशन के दिसम्बर 2018, के सर्वे के मुताबिक, जीएसटी के कारण 35 लाख लोग बेरोज़गार हुए। इस से ज़्यादा भयानक हाल नोटबंदी ने रोज़गारों को बेरोज़गार कर के किया था। लाखों की संख्या में असंगठित क्षेत्र में लोग नोटबंदी के बाद बेरोज़गार हुए और शहरों में काम ना मिलने के कारण ये लोग गाँवों में वापस पहुँच गए।

गाँवों में भी रोज़गार ना मिलने के कारण ये लोग मनरेगा से बड़ी संख्या में जुड़े। इसलिए ही वर्ष 2016, के बाद मनरेगा में मज़दूरों की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ी है। इस वजह से ही मनरेगा के लिए फण्ड कम पड़ रहा है। सरकार इस पूरी स्तिथि से वाकिफ है। इसी कारण ‘नरेगा संघर्ष मोर्चा’ ने पिछले साल वित्त मंत्रालय को मनरेगा में बजट की कमी से सम्बंधित ज्ञापन सौंपा था।

उन्होंने मनरेगा के लिए वार्षिक 80,000 करोड़ रुपए के बजट की मांग की है। इस सब के बावजूद मोदी सरकार बजट बढ़ाने की जगह घटा रही है और चालाकी से मीडिया द्वारा अपना गुणगान भी करा रही है।

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