पिछले कुछ माह से मोदी सरकार की आलोचना के लिए चर्चा में रहे राज्यपाल सत्यपाल मलिक का एक और बयान सुर्खियों में है। मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा है कि केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा ‘टेनी’ को बहुत पहले बर्ख़ास्त कर दिया जाना चाहिए था। मलिक का मानना है कि अजय मिश्रा के मोदी सरकार में बने रहने से आगामी उत्तर प्रदेश के चुनाव पर असर पड़ेगा।

दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में सत्यपाल मलिक ने कहा, ”केंद्रीय गृह राज्यमंत्री बहुत सक्रिय हैं लेकिन कभी कभी लोगों को लगता है कि वो बुरे लोगों का बचाव करते हैं। मिश्रा को उनके भाषण के तुरंत बाद बर्ख़ास्त कर देना चाहिए था… ‘मैं तुम्हें ठीक कर दूंगा…तुम मुझे जानते नहीं हो…’ कोई ऐसे बात करता है?”

बता दें कि, किसानों के व्यापक विरोध के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने विवादित कृषि कानूनों को तो वापस ले लिया, लेकिन उस केंद्रीय गृह राज्यमंत्री को बर्खास्त नहीं किया जिसके बेटे पर किसानों को कुचलने का आरोप है। किसान संगठनों द्वारा लगातार केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा ‘टेनी’ को बर्खास्त करने की मांग उठाई जा रही है। किसानों का कहना है कि पिता के सत्ता में बने रहने से आरोपी बेटे की निष्पक्ष जांच नहीं हो पाएगी।

किसानों की मांग तर्कसंगत है। लेकिन भाजपा में एक अलिखित कानून है, जिसका जिक्र वरिष्ठ भाजपा नेता राजनाथ सिंह अपने एक बयान में कर चुके हैं। राजनाथ ने कहा था, ”नहीं…नहीं इसमें मंत्रियों के त्यागपत्र नहीं होते हैं भैया। यूपीए सरकार नहीं है, ये एनडीए सरकार है।”

भाजपा अपने इस अलिखित कानून पर अटल रहती है। कुछएक मामलों को छोड़कर भाजपा में मंत्रियों के इस्तीफे और बर्खास्तगी आज भी रेयर है। रोहित वेमुला की आत्महत्या का मामला हो या खुद की संदिग्ध डिग्री का, स्मृति इरानी का मंत्रालय बदला लेकिन मंत्रिमंडल में बनी रहीं।

रेप के आरोप के बाद भी निहाल चंद मेघवाल दो साल तक (2014-2016) तक मंत्रीपद पर बने रहे। ललित मोदी की मदद करने को लेकर तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की गंभीर आलोचना हुई। विपक्ष ने इस्तीफे की मांग की, लेकिन वो मंत्रीपद पर बनी रहीं।

2014 में रेल मंत्री बने सुरेश प्रभु के कार्यकाल में कई रेल हादसे हुए। विपक्ष ने इन हादसों के लिए सुरेश प्रभु की आलोचना करते हुए इस्तीफे की मांग की। सुरेश प्रभु ने इस्तीफ़े की पेशकश भी की, लेकिन इस्तीफ़ा मंज़ूर नहीं किया गया।

2017 में #MeToo अभियान के दौरान महिला पत्रकार प्रिया रमानी समेत 20 महिला पत्रकारों ने एम जे अकबर पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। उस वक्त वो विदेश राज्यमंत्री थे। विपक्ष से लेकर पत्रकारों के समूह तक ने एम जे अकबर के इस्तीफे की मांग की। काफी समय तक इस्तीफा नहीं हुआ।

फिर अचानक 17 अक्टूबर, 2018 को अकबर ने इस्तीफा दे दिया। यह पहली बार था, जब मोदी सरकार के किसी मंत्री ने किसी विवाद में घिरने के बाद अपने पद से इस्तीफा दिया।

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