महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा)- इस योजना के नाम में ही रोज़गार गारंटी है लेकिन मोदी सरकार के कार्यकाल में ये गारंटी ख़त्म होती जा रही है।

इस सरकार के कार्यकाल में एक तरफ बेरोज़गारी बढ़ रही है और दूसरी तरफ सरकारी योजनाएं भी नाकाम हो रही हैं। इस सकार के आने के बाद मनरेगा योजना में रोज़गार ना मिलने वालों की संख्यां बढ़ती जा रही है।

दरअसल, मनरेगा योजना के अंतर्गत हर साल लोग रोज़गार के लिए आवेदन करते हैं। उनको रोज़गार देना सरकारी ज़िम्मेदारी होती है और इसलिए ही ये एक रोज़गार गारंटी योजना है। सरकारी आंकड़ें बताते हैं कि वर्ष 2013-14, में मनरेगा के अंतर्गत रोज़गार की मांग करने वालों में से 10% लोगों को रोज़गार नहीं मिला था।

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ये आंकड़ा अब बढ़कर 18% हो गया है। वर्ष, 2018-19 में मनरेगा में रोज़गार के लिए आवेदन करने वालों में से 1.30 करोड़ लोगों को रोज़गार नहीं मिला है। और ये सिर्फ इस साल की ही कहानी नहीं है बल्कि वर्ष 2014 से ये सिलसिला रुक नहीं रहा है। वर्ष 2013-14, में रोज़गार ना मिलने वालों की संख्यां 10% जो वर्ष 2014-15, में बढ़कर 14% हुई।

वर्ष 2017-18 तक ये 15% हुई और अब वर्ष 2018-19 में ये 18% हो गई है। कहानी सिर्फ इतनी नहीं है, इस योजना में मज़दूरों को वेतन ना मिलने वालों की संख्या और अवधि भी बढ़ती जा रही है। योजना के नियमानुसार मज़दूरी पूरी होने के 15 दिनों के अंदर वेतन मज़दूर को मिल जाना चाहिए लेकिन इसमें महीनों का समय लग रहा है।

सरकारी आंकडें बताते हैं कि पिछले साल लगभग 7014 करोड़ रुपये की मजदूरी मिलने में 15 दिनों से अधिक की देरी हुई थी। इस साल, अब तक 246 करोड़ रुपये की राशि बाकि है। यह साल का अंत है जबकि धन जारी नहीं किया जा रहा है या धनराशि देने में देरी की जा रही है।

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