नरेंद्र मोदी के नाम के आगे प्रधानमंत्री लगने के बाद से ही देश में गाय की रक्षा के नाम पर मॉब लिंचिंग की घटनाएं तेज़ी से बढ़ी हैं। ऐसी घटनाओं में ज़्यादातर मुसलमानों को ही निशाना बनाया गया है। 2010 के बाद से गोवंशों के नाम पर होनी वाली 95 प्रतिशत से ज्यादा हत्याएं मोदी सरकार में हुई हैं।

ताजा मामला बिहार के अररिया का है। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की खबर के अनुसार, 8 दिसंबर को अररिया के फुलकहा थाना क्षेत्र के भवानीपुर गांव में एक 50 वर्षीय मोहम्मद सिद्दीकी की पशु चोरी के आरोप में हत्या कर दी गई। गांव के 100 से भी ज़्यादा लोगों ने सिद्दीकी को लाठी-डंडों से तब तक पीटा जब तक वो मर नहीं गया।

फुलकहा थाना प्रभारी का कहना है कि उस इलाके से अक्सर मवेशियों के चोरी होने की खबरें आती थीं, लेकिन मॉब लिंचिंग का ये मामला नया है। आरोप है कि 8 दिसंबर को कुछ लोग भैंसों और बैलों की चोरी कर रहे थे। तभी किसी ने शोर मचाया और कथित तौर पर चोरी की घटना को अंजाम दे रहे लोग भाग खड़े हुए। मोहम्मद सिद्दीकी को उसी कथित चोर गिरोह का सदस्य बताया जा रहा है। मौके पर पहुंची 100 से ज्यादा लोगों की भीड़ ने सिद्दीकी को तब तक पीटा, जब तक उसकी मौत नहीं हो गई।

तालिबान की कट्टरता पर मुंह बिचकाने वाले भारतीयों के लिए ऐसी घटनाएं अब आम हो चुकी हैं। मोदी सरकार में मॉब लिंचिंग न्यू नॉर्मल है।

बता दें कि पुलिस ने इस मामले में अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज कर खानापूर्ति कर दी है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले में अब तक एक भी गिरफ्तारी नहीं हुई है।

मोहम्मद सिद्दीकी की मॉब लिंचिंग का मामला जिले का एकलौता मामला नहीं है। दिसंबर 2019 में भी अररिया जिले के सिमरबनी गांव में मवेशी चोरी के शक में 53 वर्षीय व्यक्ति की भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी थी।

भारत में ऐसे कई घटनाओं का गवाह बन चुका है जिसमें कोई न कोई वजह बताकर भीड़ हत्या कर देती है। गौ-रक्षा के नाम पर तो मुसलमानों की हत्या तो अब बात हो चुकी है।

सरकार इन मामलों को खराब कानून व्यवस्था का मामला बताकर हल्का कर देती है। लेकीन धर्म या जाति आधारित भीड़हत्याओं के तार सीधा राजनीति से जुड़ते हैं। तमाम रिपोर्ट्स बताती हैं कि सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के राज में ऐसी हत्याएं आम हो गई हैं। शायद ऐसा इसलिए क्योंकि अपराधियों को पता है कि वो मॉब लिंचिग करने के बावजूद बच निकलेंगे।

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