उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में साल 2013 में हुए दंगों के मामले में अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। अदालत ने जिन लोगों को बरी किया है, उनपर दंगों के दौरान मुसलमानों की हत्या करने का आरोप था। इन सभी आरोपियों पर दंगों के सिलसिले में बीते दो साल से 10 मुकदमे चल रहे थे।

‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि मुजफ्फरनगर दंगों में पुलिस ने अहम गवाहों के बयान दर्ज नहीं किए। रिपोर्ट में कहा गया है कि हत्या में इस्तेमाल हथियारों को पुलिस ने कोर्ट में पेश नहीं किया। बता दें कि मुजफ्फरनगर में साल 2013 में हुए दंगे में कम से कम 65 लोग मारे गए थे।

मारे गए ज़्यादातर लोगों के परिजनों और करीबियों ने अदालत में मुकदमे दर्ज कराए थे। लेकिन बाद में यह गवाह अपने बयान से मुकर गए। जिसके बाद अदालत ने इन सभी 10 मुकदमों के आरोपियों को रिहा कर दिया।

रिपोर्ट के मुताबिक, इन 10 मामलों से जुड़े शिकायतकर्ता और गवाहों से बातचीत के साथ ही अदालत के रिकॉर्ड और दस्तावेज़ों की पड़ताल के बाद पता चला कि पांच गवाह अदालत में इस बात से मुकर गए कि अपने संबंधियों की हत्या के वक्त मौके पर मौजूद थे। छह अन्य गवाहों ने अदालत में कहा कि पुलिस ने जबरन खाली कागजों पर उनके हस्ताक्षर लिए थे।

मुजफ़्फ़रनगर दंगों के 41 मामलों में से सिर्फ एक मामले में मुजफ़्फ़रनगर की स्थानीय अदालतों ने सज़ा सुनाई है। इस मामले में इस साल 8 फरवरी को सज़ा सुनाई गई थी। इसमें 27 अगस्त 2013 को कवल गांव में हुई वह घटना शामिल है, जिसमें सचिन और गौरव दो भाइयों की हत्या की गई थी।

इस हत्या के आरोप में अदालत ने मुज़म्मिल, मुजस्सिम, फुर्कान, नदीम, जहांगीर, अफजल और इकबाल को सज़ा सुनाई। जबकि हत्या से जुड़े 10 मामलों में 53 लोगों को सीधे तौर पर रिहा कर दिया गया। इसके अलावा सामूहिक बलात्कार के चार और दंगों के 26 मामलों में भी किसी आरोपी को सजा नहीं मिल सकी।

ग़ौरतलब है कि दंगे से जुड़े सभी मामले पूर्व अखिलेश यादव सरकार में दर्ज किए गए थे। इनकी जांच भी पिछली सरकार के कार्यकाल में शुरू हुई। हालांकि इनकी सुनवाई वर्तमान योगी सरकार के कार्यकाल में चल रही थी। जिसमें सभी को बरी किया गया है।

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