सेना और राज्य में उसके अधिकारों से जुड़ी एक बड़ी खबर सामने आई है। नागालैंड की विधानसभा में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (अफस्पा) को निरस्त करने के लिए प्रस्ताव पारित किया गया है। ये फैसला मोन जिले में सेना द्वारा 14 निर्दोष नागरिकों की हत्या होने के कुछ दिनों बाद लिया गया है।

दरअसल, 20 दिसंबर को नागालैंड विधानसभा में ध्वनि मत से अफस्पा (AFSPA) को निरस्त करने का प्रस्ताव पारित किया गया है। मुख्यमंत्री नेफियू रियो ने कहा कि पूरा नागा समुदाय ही अफस्पा को रद्द करने की मांग कर रहा है। विधायकों ने सदन में दो मिनट का मौन रखकर 14 मारे गए नागरिकों को याद भी किया। उनका कहना है कि इस कानून के चलते निर्दोषों की हत्या हुई और अपराधियों पर कड़ी कार्यवाई होनी चाहिए।

सुरक्षा बलों ने नागरिकों को कब और क्यों मारा?

नागालैंड में 4 दिसंबर को शाम 4 बजे के करीब  सुरक्षाबलों की फायरिंग में 14 ग्रामीणों की मौत हो गई थी। सेना का दावा है कि उन्होनें उग्रवादियों की संभावित गतिविधि की सूचना मिलने पर ‘कार्रवाई’ की। लेकिन उनकी इस कार्यवाई के कारण 14 निर्दोषों की जान चली गई। इसमें एक जवान की भी मौत हुई है। ये मामला मोन ज़िले के ओटिंग के तिरू गांव का था।

इस घटना में मारे गए लोग एक मिनी पिकअप ट्रक में कोयला खदान से घर लौट रहे थे। वो ड्यूटी पर जाने से पहले अपने परिवार के सदस्यों के साथ समय बिताने के लिए घर आ रहे थे। पीड़ितों के घर न लौटने पर गांववालों ने उन्हें खोजना शुरू किया, लेकिन उन्हें केवल अपने परिजनों की लाश मिली।

घटना के बाद सेना ने कोर्ट ऑफ इंक्वायरी का आदेश दिया था, तो वहीं मुख्यमंत्री नेफियू रियो और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पूरे मामले पर उच्चस्तरीय जांच की बात कही थी। इस घटना के बाद अफ्स्पा के रद्द करने की मांग पहले से भी ज़्यादा तेज़ हो गई है।

क्या है अफस्पा?

नागालैंड समेत अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में अफ्स्पा कानून लागू है। इन राज्यों में सशस्त्र बल को बिना वारंट के गिरफ्तारी और कुछ स्थितियों में व्यापक अधिकार मिलते हैं। अफ्सपा को वर्ष 1958 में एक अध्यादेश के जरिए लाया गया। इसके ज़रिये नागालैंड, जम्मू एंड कश्मीर, असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश जैसे कथित अशांत क्षेत्रों में सेना को  विशेष शक्तियां प्रदान की गई हैं।

नागालैंड में अफ्स्पा के निरस्त होने के प्रस्ताव के क्या हैं मायने ?

इस राज्य में सेना द्वारा लिए गए एक्शन के चलते कई निर्दोष नागरिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। जनचौक की खबर के अनुसार, सदन में इसपर हो रही चर्चा के दौरान उपमुख्यमंत्री  पैटन ने कहा कि “शक्ति और प्रतिरक्षा” ने वर्षों से “सुरक्षा बलों के सदस्यों द्वारा घोर दुर्व्यवहार के उदाहरण” दिए हैं। हाल ही में हुई घटना के बाद से ही इस कानून को हटाने की मांग बढ़ती गई, जिसके फलस्वरूप ये फैसला लिया गया है।

नागालैंड के अलावा अन्य राज्यों में इस कठोर कानून को निरस्त करने की मांग उठती रही है।  मणिपुर की इरोम शर्मीला ने इसके लिए 16 सालों तक भूख-हड़ताल भी की है। 15 जुलाई 2004 को 12 महिलाओं ने आर्मी के खिलाफ नग्न होकर विरोध प्रदर्शन किया था।

यकीनन, अफ्स्पा का विरोध करने वालों के लिए लड़ाई अभी लंबी है। लेकिन नागालैंड की विधानसभा में हुआ फैसला इस लड़ाई में शुरुआती कड़ी साबित होगा।

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