उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस, रालोद समेत कई दलों ने प्रथम और दूसरे चरण के उम्मदवारों की सूची भी जारी कर दी है। दल-बदल और टीका-टिप्पणियों का दौर भी जारी ही है। साथ ही शुरू हो चुके हैं तरह-तरह के स्टंट।

नेताओं का एक बड़ा पुराना और चर्चित करतब है गरीबों और दलितों के यहां जाकर भोजन करना। इस तरह के कृत्य को पीएम मोदी कभी ‘गरीब टूरिज्म’ कहा करते थे। लेकिन आज-कल भाजपा के ही नेतागण ही इस तरह के धतकर्म में अधिक लिप्त पाए जाते हैं।

इस तरह की हालिया घटना गोरखपुर में देखने को मिली है। तय कार्यक्रम के मुताबिक, योगी आदित्यनाथ शुक्रवार को झूमिया गेट स्थित गोरखपुर फर्टिलाइजर पहुंचे जहां उन्होंने पार्टी के दलित कार्यकर्ता अमतपाल भारती के घर खाना खाया।

योगी आदित्यनाथ के अलावा गोरखपुर से सांसद और अभिनेता रवि किशन ने दलित परिवार के साथ खाना खाकर फोटोसेशन कराया है। फोटो खिंचवाकर रवि किशन ने इसे अपने ट्वीटर हैंडल पर शेयर भी किया, जिसका कैप्शन है- आज गोरखपुर में दलित भाई के परिवार में सह भोज किया।

रवि किशन के इस ट्वीट को रिट्वीट करते हुए एक ट्वीट यूजर ( @j_garima_j ) ने पूछा, किसी का नाम “दलित भाई” होता है क्या?

वहीं आरएलडी नेता प्रशांत कनौजिया ने लिखा, दलित भाई के यहां भोज किया लेकिन गिलास कागज का इस्तेमाल किया। उसका स्टील का गिलास छू लेते तो गौ मूत्र से नहाना पड़ता?

महाराष्ट्र सरकार में मंत्री नवाब मलिक ने तंज करते हुए लिखा है, पत्तल, सलाद, पूरी और भाजी दर्शाता है की माल रसोईये का है। दलित लोटे में पानी पिये और अभिनेता कगाज की गिलास में। वाह बचवा वाह.. ज़िंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने दलितों के यहां भोजन कर फोटो खिंचवाने वाले नेताओं की तस्वीर का एक कोलाज शेयर करते हुए लिखा है, ”छुआ-छूत की बीमारी सवर्णों की है। वे बेचारे बीमार हैं। लेकिन डॉक्टर होने का नाटक करने वाले लोग बीमार का इलाज करने और उन्हें समझाने की जगह दलितों के घर आ जाते हैं मुफ़्त का खाना खाने। दलित थोड़ी न छुआ-छूत करता है। वह तो आपको खिला ही देगा। समझाना है तो अपने रिश्तेदारों को समझाओ।”

https://twitter.com/Profdilipmandal/status/1482280873315962880?s=20

सवाल उठता है कि चुनाव आते ही भाजपा का ये दलित टूरिज्म नहीं है तो और क्या है? यूपी में 26% डीएम ठाकुर हैं यानी योगी आदित्यनाथ की जाति से हैं। यूपी के कुल जिलाधिकारियों में से 40% सवर्ण हैं। पूरे UP में सिर्फ 4 DM दलित हैं। NCRB के आंकड़ों के मुताबिक, दलितों के खिलाफ होने वाले अपराध में उत्तर प्रदेश नंबर-1 है।

क्या ये बिना जातिवाद के संभव है कि यूपी में जिन जातियों की आबादी कुल 10% भी नहीं हैं… वो 50% से ज़्यादा प्रशासनिक पदों पर क़ब्ज़ा करके बैठी है। और ये आंकड़ा उस दौर का है जब 50% से अधिक IAS-IPS SC/ST/OBC से बन रहे हैं।

इसके अलावा उत्तर प्रदेश की 30 स्टेट यूनिवर्सिटी में से 22 के कुलपति सवर्ण हैं। यानी 73% से भी ज्यादा सवर्ण हैं। दलित VC सिर्फ 1 और ओबीसी 6 हैं। मतलब, योगी खाना तो दलितों के घर खा रहे हैं। लेकिन कुलपति सवर्णों को बना रहे हैं! क्या ये जातिवाद नहीं है?

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