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अगले साल देश में लोकसभा चुनाव हैं। पिछले कुछ महीनों से देश में बहुत कुछ बदल रहा है और अब बदलते-बदलते देश की जीडीपी और उसका फ़ॉर्मूला भी बदल गया है।
बीते बुधवार को सेंटर स्टेटिस्टिक्स ऑफिस (सीएसओ) और नीति आयोग ने एक नए आधार वर्ष और नए फ़ॉर्मूले के साथ 2018 की दूसरी तिमाही की जीडीपी को पेश किया।
बता दें, कि जीडीपी की गणना किसी एक वर्ष की जीडीपी के आधार पर की जाती है। पहले ये वर्ष 2004-05 था जिसे अब बदलकर वर्ष 2011-12 कर दिया गया है।
इसमें एक नई चीज़ ये हुई वर्ष 2005-06 से वर्ष 2011-12 की जीडीपी के आंकड़ों को गलत बताते हुए उसे बदल दिया गया। और अब कहा जा रहा है कि मोदी सरकार के कार्यकाल में जीडीपी बहतर हुई है पहले इसे गलत फ़ॉर्मूले से निकाला जा रहा था और अब का फ़ॉर्मूला ठीक है।
इस नए फ़ॉर्मूले पर कई सवाल उठ रहे हैं क्योंकि इसमें ऐसे कई आंकडें जोड़े गए हैं जो पहले मौजूद नहीं थे और इन आंकड़ों का स्रोत ठोस नहीं है। साथ ही कई तरह के निवेश जो लगातार घट रहे हैं उसे भी इसमें जोड़ा नहीं गया है।
इसके बावजूद भी एक मामले में मोदी सरकार ने खुद ही अपनी पोल खोल ली है। सरकार के आंकड़ों में ये दिखा कि जीडीपी मोदी सरकार के कार्यकाल में बढ़ रही है लेकिन कमाई घटी है।
सरकार ने अपने आंकड़ों में बताया कि वर्ष 2006 से 2014 तक सामान्य जीडीपी 6.7% रही जबकि वर्ष 2015 से 2018 तक जीडीपी 7.3% रही। लेकिन वहीं ईपीएस (अर्निंग पर शेयर) यानि की कमाई 50% से भी ज़्यादा घट गई है।
bloomberg.com में सीएसओ के हवाले से जो आंकडें आए हैं उनके मुताबिक ईपीएस जो वर्ष 2006 से 2014 के बीच सामान्य 11% रहा वो अब 50% से भी ज़्यादा घटकर वर्ष 2015 से 2018 के बीच 5.4% पर आ गया है।
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मतलब अगर मोदी सरकार के नए फ़ॉर्मूले की जीडीपी को मान भी लिया जाए तो सरकार के वर्तमान आंकडें भी ये कह रहे हैं कि कमाई 50% से ज़्यादा घटी है। जीडीपी बढ़ना और कमाई का घटना किस तरह का विकास है ये सवाल इस सरकार से ज़रूर पूछा जाना चाहिए। क्या ये मोदीनॉमिक्स है?