आज उन तमाम पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए इंसाफ़ का दिन है जिन्होंने 1984 के नरसंहार को झेला। दिल्ली हाईकोर्ट ने आज यानी 17 दिसंबर को 1984 में हुए सिख नरसंहार पर फैसला सुनाया।

कोर्ट ने कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद सज्जन कुमार को दोषी मानते हुए उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई है। साथ ही 5 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है। हाईकोर्ट ने सज्जन कुमार को 31 दिसंबर तक सरेंडर करने को कहा है।

सज्जन कुमार के अलावा जिन लोगों को सिखों के क़त्ल-ए-आम में कोर्ट ने दोषी करार दिया है उनमें- कैप्टन भागमल, पूर्व पार्षद बलवान यादव और गिरधारी लाल शामिल हैं, दिल्ली हाईकोर्ट ने इन्हें भी उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई है।

आज़ाद भारत में दो बार बड़े पैमाने पर बहुसंख्यक हिंदुओं ने अल्पसंख्यकों के साथ बर्बरता की। पहली बर्बरता 1984 में हुई। ये सिख विरोधी दंगा के रुप में दर्ज है। इस दंगे में उग्र हिंदुओं ने अल्पसंख्यक सिखों का नरसंहार किया। तब देश में कांग्रेस की सरकार थी।

दूसरी बर्बरता सन 2002 में गुजरात में हुई। इस दंगे में अल्पसंख्यक मुस्लिमों का नरसंहार किया गया था। तब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थें और इस दंगे में उनकी मुख्य भूमिका बताई जाती है। हालांकि नरेंद्र मोदी की तमाम जांच एजेंसियों की रिपोर्ट में बेदाग साबित हो चुके हैं।

पत्रकार मनोज कुमार लिखते हैं कि ‘1984 और 2002 के दंगों में एक बड़ी समानता भी है। दोनों ही दंगों में हिन्दू Aggressor थे और इस देश के अल्पसंख्यक Victim. 1984 में हिन्दुओं का नेतृत्व कांग्रेस ने किया (राजीव गाँधी को 400 सीटें आई थीं) और 2002 में भाजपा ने’

एनडीटीवी के पत्रकार उमाशंकर सिंह ने लिखा है कि ‘सज्जन जैसी सज़ा दंगों के हर दुर्जन को मिले। हर उस दंगाई को जो सत्ता में बैठ कर खुद को कानून से बचाता रहा है। जो ‘साक्ष्यों की कमी’ के आधार पर बरी हुआ है।चाहे 1984 हो। या 2002 हो।’  

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