
देश की सबसे बड़ी पेट्रोलियम कंपनी ONGC को मोदी सरकार ने बर्बाद कर दिया है। अब 149 तेल व गैस क्षेत्रों को बेचने पर विचार हो रहा है
पिछले कुछ सालों से घाटे में चल रही देश की महारतन कंपनियों में से एक पेट्रोलियम कंपनी ONGC (तेल और प्राकृतिक गैस नगम) अब अपने 149 तेल और गैस क्षेत्रों को निजी एवं विदेशी कंपनियों को बेच सकती है।
खबर है कि ऐसा करने का सरकार का उद्देश्य, घाटे में चल रही ओएनजीसी को बड़े तेल एवं गैस क्षेत्रों पर अधिक ध्यान देने के लिए लिया जा रहा है। सरकार चाहती है कि ओएनजीसी अब अधिक ध्यान बड़े क्षेत्रों पर ही लगाए।
पेट्रलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की पिछले दिनों हुई बैठक में पेश रिपोर्ट के अनुसार, ओएनजीसी का 95 प्रतिशत उत्पादन 60 बड़े क्षेत्रों से आता है। साथ ही उत्पादन का 5 प्रतिशत 149 क्षेत्रों से आता है।
इसी बैठक के दौरान ही इन 149 क्षेत्रों को निजी और विदेशी कंपनियों के हाथों बेचने का सुझाव रखा गया था।
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आपको बता दें कि यह कंपनी बीते कुछ समय से घाटे का दौर से गुजर रही है। ओएनजीसी को लेकर कांग्रेस का आरोप है कि देश की यह महारतन कंपनी मोदी सरकार के गतल इरादों के कारण ही आज घाटे की स्थिति में है।
पिछले दिनों कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कंपनी के बर्बाद होने पर प्रधानमंत्री मोदी को जिम्मेदार ठहराया था और कहा था कि 2005 में गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृष्णा और गोदवरी में जो गैस और तेल के भंडार मिलने का सपना देखा था उनके कारण ही देश की यह महारतन कंपनी आज बर्बाद हो गई है।
एक समय देश को मुनाफा देने वाली यह कंपनी आज अपने कर्मचारियों को उनकी तनख्वाह देने की स्थिति में भी नहीं है। निजी खिलाड़ियों का बड़ता दखल और उनके साथ मोदी सरकार की मिलीभगत आज भारत की ऊर्जा सुरक्षा को आघात पहुंचा रहें हैं।
साथ ही कांग्रेस प्रवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले की जांच के लिए आपील की थी कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले को लेकर एक कमेटी का गठन कर देश के पेट्रोलियम क्षेत्र में हो रहे भ्रष्टाचार की जांच कराए।
दरअसल 4 सितंबर 2018 को ओएनजीसी एम्पोई मजदूर सभा ने भारत के प्रधान मंत्री को लिखे खत में भी कंपनी ही इस हालत का जिम्मेदार भारत सरकार को ही माना था।
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खत में मजदूर सभा ने लिखा था कि पिछले 52 महीनों में कंपनी के साथ सरकार द्वारा जो व्यवहार किया गया उसके कारण की एक मुनाफा कमाने वाली कंपनी आज अपने कर्मचारियों को उनकी तनख्वाह देने के लायक नहीं बची है।
गौरतलब हो कि ओएनजीसी देश की सबसे बड़ी पेट्रोलियम कंपनी है जिस पर 2017 में 53,619 करोड़ का कर्ज था जो साल 2018 में बढ़ कर 1 लाख 11,533 करोड़ हो चुका है.
इस कंपनी को लेकर सबसे ज्यादा विवाद कृष्णा-गोदावरी बेसिन में किए गए विवाद को लेकर है। जिसमें ओएनजीसी ने 8 हजार करोड़ का निवेश भारत सरकार के दवाब के चलते किया था।
दरअसल 26 जून 2005 को गांधीनगर में गुजरात के तत्कलीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में घोषणा की थी कि कृष्णा-गोदावरी बेसिन में गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉरपोरेशन के अनुसार 20 ट्रिलियन क्यूबिक गैस का भंडार है। साथ ही गुजरात सरकार द्वारा इस गैस की अनुमानित कीमत 2 लाख 20 हजार करोड़ बताई गई थी।
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इस भंडार की खोज में गुजरात की पेट्रोलियम कंपनी ने गैस खोजने में 2005 से 2015 तक लगभग 20 हजार करोड़ खर्च कर दिए थे। वर्तमान में कृष्णा-गोदावरी बेसिन में गैस का कोई अता-पता नहीं है। साथ ही गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉरपोरेशन को हुए इस भारी भरकम नुकसान की भरपाई के लिए इस बेसिन को ओएनजीसी को बेच दिया गया था।
इस बेसिन को खरीदने के लिए सरकार द्वारा ओएनजीसी पर दवाब बनाया गया था साथ ही ऐसे कई निवेश सरकार ओएनजीसी से करा चुकी है जिसकी कारण ओएनजीसी आज घाटे के दौर से गुजर रही है।