24 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुंभ स्नान के लिए प्रयागराज पहुंचे। पीएम मोदी ने स्नान, पूजा, दर्शन आदि करने के बाद पांच सफाईकर्मियों के पैर धोए और सम्मानित किया।

सफाईकर्मियों के पैर धुलने के बाद मंच से भाषण देते हुए पीएम मोदी ने कहा ‘आज जिन सफाईकर्मी भाइयों-बहनों के चरण धुलकर मैंने वंदना की है, वह पल मेरे साथ जीवनभर रहेगा। उनका आशीर्वाद, स्नेह, आप सभी का आशीर्वाद, आप सभी का स्नेह मुझपर ऐसे ही बना रहे, ऐसे ही मैं आपकी सेवा करता रहूं, यही मेरी कामना है।’

मोदी ने सफाईकर्मियों की तारीफ करते हुए कहा ‘कुंभ में हठ योगी भी हैं, तप योगी भी हैं, मंत्र योगी भी हैं और इन्हीं के बीच मेरे कर्मयोगी भी हैं। ये कर्मयोगी मेले की व्यवस्था में लगे वे लोग हैं, जिन्होंने दिन-रात मेहनत की।

कर्मयोगियों में प्रयागराज के लोग भी शामिल हैं, नाविक भी शामिल हैं। स्वच्छाग्रही भी शामिल हैं। इन्होंने अपने प्रयासों से कुंभ के विशाल क्षेत्र में साफ-सफाई को पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना दिया।’

अब कुछ सवाल-

ये सही है कि कुंभ के विशाल क्षेत्र को साफ रखना आसान काम नहीं था, इसके लिए सफाईकर्मियों को पीएम की तरफ से बधाई मिली ये अच्छी बात है। लेकिन इस बधाई से जातिवाद की शर्मनाक सच्चाई छिप नहीं जाती है। क्या पीएम मोदी को ये बात नहीं पता है कि भारत के ज्यादातर सफाईकर्मी दलित समुदाय से आते हैं?

इस जातिवादी व्यवस्था को खत्म करने के लिए पीएम ने कोई कदम उठाया है? क्यों कूड़ा-कचारा, मैला उठाने का काम दलित समुदाय के लोग ही करें… प्रधानमंत्री मोदी से बधाई के लिए?

पीएम मोदी ने अपने कार्यकाल में ये सुनिश्चित करने की कोशिश क्यों नहीं की कि सफाईकर्मी का काम सिर्फ समुदाय विशेष के लिए होगा?

जहां तक प्रधानमंत्री मोदी द्वारा सफाईकर्मियों के पैर धुलने की बात है तो सफाई कर्मचारी आंदोलन के संस्थापक और रमन मैग्सेसे अवॉर्ड विजेता बेजवाड़ा विल्सन का मानना है कि पीएम ने सफाईकर्मियों को तुच्छ दिखाकर खुद का महिमामंडित करने की कोशिश की है।

वरिष्‍ठ पत्रकार हृदयेश जोशी ने एक लंबे फेसबुक के माध्यम से बेजवाड़ा विल्सन का मत रखा है। उस पोस्ट का कुछ अंश आप नीचे पढ़ सकते हैं।

वरिष्‍ठ पत्रकार हृदयेश जोशी ने फेसबुक पर एक लंबी पोस्‍ट लिखकर इस बारे में सफाई कर्मचारी आंदोलन के संस्थापक और रमन मैग्सेसे अवॉर्ड विजेता बेजवाड़ा विल्सन का मत रखा है। उनकी यह पोस्‍ट आप नीचे पढ़ सकते हैं।

‘सफाई कर्मचारी आंदोलन के संस्थापक और रमन मैग्सेसे अवॉर्ड विजेता बेजवाड़ा विल्सन का कहना है कि कुम्भ में सफाईकर्मियों के पैर धोना असंवैधानिक है। यह उन्हें तुच्छ दिखाकर खुद को महिमामंडित करने जैसा है।

विल्सन पिछले कई दशकों से मैला उठाने के काम में लगे लोगों के बीच काम कर रहे हैं और इसके लिये उन्हें देश विदेश में सम्मानित किया जा चुका है।

विल्सन ने मुझसे कहा, ‘प्रधानमंत्री को सफाई कर्मियों और दलितों के पैर नहीं धोने चाहिये बल्कि उनसे हाथ मिलाना चाहिये। पैर धोने से कौन ग्लोरिफाई (महिमामंडित) होता है। वह (प्रधानमंत्री) ही ग्लोरिफाइ होते हैं ना।

वह सफाईकर्मियों के पांव पकड़ते हैं तो वह यह संदेश दे रहे हैं कि आप (सफाईकर्मी) बहुत तुच्छ हैं और मैं महान हूं। इससे किसका फायदा होता है? इनके पैर धोकर वह खुद को महान दिखा रहे हैं। यह बहुत खतरनाक विचारधारा है।’

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