गत शनिवार को बिहार के औरंगाबाद जिले के देव में बीजेपी के विधान पार्षद राजेंद्र कुमार सिंह के घर पर हुआ था। इस नक्सली हमले में राजन सिंह के चाचा मौत हो गई, साथ ही नक्सलियों ने छह गाड़ियों समेत एक सामुदायिक भवन को भी विस्फोट से उड़ा दिया।


 नक्सल हमले की एक तस्वीर/Pc- NDTV

इस हमले के पुलिस जांच के दौरान नक्सलियों द्वारा छोड़ा एक पर्चा मिला है। इस पर्चे से बीजेपी विधान पार्षद राजेंद्र कुमार सिंह और नक्सलियों के संबंध सामने आए हैं।

नक्सलियों का आरोप है कि नोटबंदी के दौरान उन्होंने राजेंद्र कुमार सिंह को 2 करोड़ रुपए के दिए थे। पर्चे के मुताबिक, राजेंद्र कुमार सिंह ने नक्सलियों से ये रुपए नए नोट में बदलवाने के लिए दिए थे।

नक्सलियों का पर्चा

इतना ही नहीं नक्सलियों ने लेवी के रूप में जो 2 करोड़ रुपए वसूले थे वो भी राजेंद्र सिंह के पास ही है। नक्सलियों का कहना है कि राजेंद्र उनके रुपए नहीं लौटा रहे थे इसलिए उन्होंने उनके घर पर हमला किया। हालांकि राजेंद्र कुमार सिंह ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि नक्सली मेरे खिलाफ दुष्प्रचार करने में लगे हैं।

लेकिन सवाल तो उठेंगे ही कि क्या भाजपा नेता और नक्सलियों के बीच संबंध है? क्या बिहार में भाजपा नेता नक्सलियों की मदद करते हैं? क्या पीएम मोदी जब नोटबंदी के माध्यम से नक्सलियों के कमर तोड़ने की बात कर रहे थे तब बीजेपी नेता नक्सलियों के साथ बिजनेस कर रहे थे?

कालाधन, नक्सलवाद, आतंकवाद, पर अंकुश लगाने का सपना दिखाते हुए पीएम मोदी ने 8 नवंबर 2016 को 500 और 1000 के पुराने नोट बंद कर दिए थे। लेकिन न कालाधन आया और न ही आतंकी हमले रुके। सीमा पर शहीद हो रहे जवान भारत के आतंकवाद ग्रस्त होने के साक्ष्य हैं। नक्सलियों से तो खुद पीएम मोदी की जान को कथित रूप से खतरा है।

ऐसे में नोटबंदी कर नक्सलियों की कमर तोड़ने और फंडिंग रोकने की बात फर्जी साबित होती है। बिहार की घटना ये सवाल खड़ा करती है कि अगर नोटबंदी नक्सियों की फंडिंग रोकने के लिए की गई थी तो बीजेपी नेता उनके नोट बदलवाने का टेंडर क्यों लिए हुए थे? हालांकि अभी आरोप साबित नहीं हुए हैं।

वैसे बता दें कि ये पहली बार नहीं है जब बीजेपी और नक्सलियों को कथित संबंध सामने आए हो। भले ही पीएम मोदी मौजूदा वक्त में नक्सलियों के खिलाफ बोल रहे हो लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब नरेंद्र मोदी ने नक्सलियों को ‘अपने लोग’ कह कर संबोधित किया था। गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए 20 मई, 2010 को नरेंद्र मोदी ने कहा था ‘नक्सली हमारे अपने लोग हैं।’

इतना ही नहीं खुद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने 2015 में कहा था कि ‘नक्सली धरती माता के सपूत हैं’ और उनका मुख्यधारा में ‘बच्चों की तरह’ स्वागत होगा।’

इन सबके अलावा बीजेपी और नक्सलियों का संबंध पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव में भी सामने आया था। बीजेपी पश्चिम बंगाल में नक्सलियों के समर्थन वाली पार्टी के साथ मिलकर पंचायत चुनाव लड़ चुकी है। जी हां… ये सत्य है।

26 मई 2018 के THE HINDU में प्रकाशित सुभोजित बागची की खबर के मुताबिक झारग्राम के एक ब्लॉक में बीजेपी ने आदिवासी समन्वय मंच के लिए सीट छोड़ दी थी। यानी जहां बीजेपी ने अपने उम्मीदवार खड़े किए वहां आदिवासी समन्वय मंच ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे।

और जहां आदिवासी समन्वय मंच ने अपने उम्मीदवार खड़े किए वहां बीजेपी ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे। बता दें कि आदिवासी समन्वय मंच को CPI (माओवादी) का समर्थन हासिल है।

खुद बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने इस बात को माना था कि आदिवासी समन्वय मंच से समझौता हुआ था। उन्होंने कहा था कि हमारा कोई औपचारिक समझौता नहीं है मगर हम दोनों ममता बनर्जी की टीएमसी से लड़ रहे थे। हम आदिवासी समन्वय मंच को जानते हैं और भविष्य में काम भी कर सकते हैं।

हालांकि घोष ने माओवादियों से समझौते की बात से इनकार किया था। लेकिन माओवादियों ने आदिवासी समन्वय मंच को वोट देने के लिए उन जगहों पर अपील जारी की थी जहां बीजेपी ने उम्मीदवार नहीं उतारे थे। इतना ही माओवादियों ने आदिवासी समन्वय मंच के लिए पोस्टर भी लगाए थे।

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