वैचारिक मतभेदों की बुनियाद पर बढ़ती हिंसा को लकेर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि इससे देश की आत्मा को चोट पहुंच रही है। हमारे देश की आत्मा बहुलता और विविधता में है।

दिल्ली से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए नॉर्थ ईस्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज के स्थापना दिवस के मौके पर एक व्याख्यान देते हुए पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, “आज, मैं पूरी चिंता के साथ देखता हूं कि मतभेदों से पैदा होने वाली हिंसा में इज़ाफा हुआ है। जिसके नतीजे में, सद्भाव के साथ हमारी सह-अस्तित्व की क्षमता को बहुत नुकसान हुआ है”। उन्होंने कहा कि भारतीय राष्ट्रीयता एक भाषा, एक धर्म नहीं है। यहां 122 से ज़्यादा भाषाएं और 7 बड़े धर्म हैं।

भारत रत्न से सम्मानित मुखर्जी ने कहा, “जब भी किसी व्यक्ति, बच्चे या महिला की क्रूरता से हत्या होती है, तो इसके साथ ही भारत की आत्मा भी चोटिल होती है। लोगों में बढ़ते गुस्से और रोष से हमारा सामाजिक ताना-बाना बिखर रहा है। हर रोज हमारे आसपार हिंसा बढ़ती जा रही है। और इस हिंसा के मूल में सिर्फ अंधेरा, भय और अविश्वास है”।

पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि, “इस तरह की हिंसा न केवल शारीरिक नुकसान करती है, बल्कि मानसिक, बौद्धिक और सामाजिक-आर्थिक समझ को भी खत्म कर देती है।” उन्होंने आगे कहा कि ये इंसानी जिंदगी की बेइंतिहा अनदेखी है, जहां अविश्वास और नफ़रत है, जहां आशंका और जलन है।

प्रणब मुखर्जी ने कहा कि शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, करुणा, जीवन के लिए सम्मान और प्रकृति के साथ सद्भाव हमारी सभ्यता की नींव हैं। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय महत्व के सभी मुद्दों पर सार्वजनिक जुड़ाव और संवाद को प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है। किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए संवाद ज़रूरी है।

पूर्व राष्ट्रपति ने कहा “सार्वजनिक जीवन में अलग-अलग विचारों और राय को अहमियत दी जानी चाहिए। हम सहमत हों या न हों, लेकिन हमें विमर्श करना चाहिए। हमारे समाज की बहुलता सदियों से विचारों को आत्मसात करने के माध्यम से आई है। धर्मनिरपेक्षता और समावेश हमारे लिए आस्था का विषय है। यह हमारी समग्र संस्कृति है जो हमें एक राष्ट्र बनाती है”।

अहिंसा को सबसे बेहतर रास्ता बताते हुए प्रणब मुखर्जी ने कहा, “केवल अहिंसक समाज ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सभी वर्गों के लोगों की भागीदारी सुनिश्चित कर सकता है, खासतौर से हाशिए के और बिखरे हुए लोगों के लिए। हमें क्रोध, हिंसा और संघर्ष का रास्ता छोड़कर शांति, सद्भाव और खुशी की ओर बढ़ना चाहिए”।

महात्मा गांधी के अहिंसा और सहिष्णुता के पाठ को याद करते हुए प्रणब मुखर्जी ने कहा, “परिस्थितियों ने आज हमें अपने आप को यह पूछने के लिए मजबूर कर दिया है कि क्या हम राष्ट्रपिता की आकांक्षाओं पर खरे उतरे हैं? मेरा दृढ़ विश्वास है कि यह अहिंसा में हमारे सदियों पुराने विश्वास का प्रकटीकरण है। आज, पहले से कहीं ज्यादा, हमें अपने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के उस विश्वास को याद करने की जरूरत है, जो उनका अहिंसा, सहिष्णुता और आपसी सम्मान में था”।

बता दें कि इससे पहले 2016 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रणब मुखर्जी ने कमजोर वर्गों के खिलाफ हिंसा को नैतिकता के रूप में राष्ट्रीय लोकाचार के खिलाफ बताया था और कहा था कि दलितों पर हमले को मजबूती से निपटाया जाना चाहिए।

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