Prashant Bhushan

गुजरात हाई कोर्ट ने विजय रूपाणी सरकार की उस दलील को खारिज कर दिया है, जिसे उसने प्रवासी मज़दूरों के खर्च की ज़िम्मेदारी उठाने से बचने के लिए पेश किया था। कोर्ट ने कहा कि सरकार को प्रवासी मज़दूरों को घर भेजने का पूरा खर्च उठाना चाहिए।

दरअसल, सरकार ने प्रवासी मज़दूरों के खर्च को लेकर कहा था कि राज्य में कई प्रवासी मजदूर अपने दम पर आए हैं और अंतरराज्यीय प्रवासी कामगार अधिनियम 1979 के तहत राज्य पर उनके विस्थापन या यात्रा का खर्च उठाने के नियम लागू नहीं होते।

सरकार की इसी दलील पर टिप्पणी करते हुए गुजरात हाईकोर्ट ने कहा है कि प्रदेश सरकार को अपने गृह-राज्य लौट रहे प्रवासी मजदूरों को भेजने का पूरा खर्च उठाना चाहिए या फिर रेलवे को किराए में छूट देनी चाहिए।

गुजरात हाईकोर्ट के इस फैसले की सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने तारीफ की है। उन्होंने ट्विटर के ज़रिए कहा, प्रवासियों के अधिकारों के प्रति संवेदनशीलता दिखाने के लिए गुजरात हाई कोर्ट को शाबाशी। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें फेल कर दिया था। गुजरात हाईकोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार को अपने गृह राज्यों में लौटने वाले प्रवासियों का किराया वहन करना चाहिए, या रेलवे को छूट प्रदान करनी चाहिए।”

इसके साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साधते हुए दूसरे ट्वीट में कहा, “जब सुप्रीम कोर्ट का इतिहास लिखा जाएगा, तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि पिछले 5 साल को सबसे ख़राब दौर के रूप में देखा जाएगा, जब इसने लगभग पूरी तरह से अपनी स्वतंत्रता को छोड़ दिया और मौलिक अधिकारों के अपने अधिकार क्षेत्र को भूल गया। जबकि उसे संविधान का संरक्षक बनाया गया है।”

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