
हाल ही में यूपी के बुलंदशहर में एक दर्दनाक घटना को अंजाम दिया गया है। 3 दिसंबर को बुलंदशहर के स्याना कोतवाली क्षेत्र में भीड़ ने दिन दहाड़े पुलिस इस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या कर दी। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, हत्या गांव में कथित गोवंश के अवशेष मिलने बाद उग्र हुए भीड़ ने की है।
पुलिस ने इस मामले में जिन लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया है, उसमें बजरंग दल, विश्वहिंदू परिषद और बीजेपी के लोग के नाम शामिल हैं। एफआईआर में सबसे ऊपर योगश राज का नाम है। योगेश बुलंदशहर में बजरंग दल का जिला संयोजक है।
घटना राजनीतिक रुप ले चुका है लेकिन नेताओं के बयान बहुत सधे हुए आ रहे हैं। ऐसा शायद इसलिए हो रहा क्योंकि हत्यारोपी कथित हिंदूवादी व गो-रक्षक है।
और हत्या भी गाय बचाने के नाम पर किया गया है। ऐसे में कोई भी राजनीतिक पार्टी सीधा हमला कर अपना हिंदू वोटबैंक खराब नहीं करना चाहती।
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उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का ही ट्वीट देख लीजिए। सुबोध कुमार की मौत पर अखिलेश यादव ने लिखा कि ‘बुलंदशहर में पुलिस व ग्रामीणों के संघर्ष में स्याना कोतवाल सुबोध कुमार सिंह की मौत का समाचार बेहद दुखद है। भावपूर्ण श्रद्धांजलि। उप्र भाजपा के शासनकाल में हिंसा और अराजकता के दुर्भाग्यपूर्ण दौर से गुज़र रहा है।’
बुलंदशहर में पुलिस व ग्रामीणों के संघर्ष में स्याना कोतवाल सुबोध कुमार सिंह की मौत का समाचार बेहद दुखद है. भावपूर्ण श्रद्धांजलि.
उप्र भाजपा के शासनकाल में हिंसा और अराजकता के दुर्भाग्यपूर्ण दौर से गुज़र रहा है.
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) December 3, 2018
अखिलेश यादव की ट्वीट में जो कोताही बरती गई है उसपर वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने रौशनी डाली है। दिलीप मंडल अखिलेश यादव द्वारी की गई दो ट्वीट का स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए लिखते हैं ‘एक नेता, दो हत्याएँ, दो ट्विट। फ़र्क़ बताइए और समझिए भारतीय समाज का मालिक कौन है।’
दोनो ट्वीट का फर्क समझाते हुए दिलीप मंडल लिखते हैं…
दो ट्विट में फ़र्क़
1. विवेक तिवारी रात दो बजे अपनी एसयूवी में बैठे थे। पुलिस से विवाद हुआ, जिसका ब्यौरा हमें नहीं मालूम। पुलिस की गोली से मारे गए। वे स्वर्गीय हैं। जी हैं। 5 करोड़ मुआवज़ा चाहिए। नेता घर जाकर परिवार से मिलता है।
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2. इंस्पेक्टर सुबोध सिंह हत्यारी भीड़ का मुक़ाबला करते हुए क़ानून और संविधान की रक्षा में शहीद हो गए। वे स्वर्गीय नहीं हैं। उनके नाम में जी नहीं लगेगा। मुआवज़ा नहीं माँगा जाएगा। नेता घर नहीं जाएगा। गुंडों के हमले को ग्रामीणों के साथ संघर्ष कहा जाएगा।