बुलंदशहर में हुई हिंसा के बाद देश की मीडिया पर सवाल उठने लगे हैं। देश में मौजूद सूचनाओं का प्रसार करने वाला हर माध्यम हिंसात्मक खबरें न सिर्फ फैला रहा है बल्कि अपने संसाधनों का पक्षपाती ढ़ग से इस्तेमाल भी कर रहा है।

मीडिया के इसी पक्षपाती रवैये का विरोध करते हुए वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने मीडिया के मौजूदा स्वरूप पर तीखा हमला किया है। उन्होंने अपने फेसबुक पर भारतीय मीडिया पर टिप्पणी करते हुए लिखा है कि

क्या इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की हत्या भाजपा की राजनीति और मीडिया द्वारा फैलाई जा रही नफरत का नतीजा है?

जब इंसानी माँस जलता है तो मीडिया की भूख और बढ़ जाती है। चैनलों और अखबारों ने लोगों के दिमाग में बारूद भर दिया है। लोग मर रहे हैं। एंकरों और संपादकों में अब जश्न का माहौल है। हर रात कराई जाने वाली सांप्रदायिक बहसों की फ़सल काटने के दिन आ गए।

दिलीप मंडल के अनुसार भारतीय मीडिया ने लोगों में धर्म के नाम पर इतना जहर भर दिया कि अब उस जहर का असर लोगों पर होने लगा है। लोग मीडिया के द्वारा रोज दिखाई जाने वाली हिंदु-मुस्लिम डिबेट से प्रभावित हैं और अब धर्म के नाम पर एक दूसरे से लड़ रहें हैं।

दिलीप मंडल के अनुसार देश में इस फैले इस संप्रादायिक माहौल को अब मीडिया में एक त्यौहार के रूप में मनाया जा रहा है। यह त्यौहार मीडिया द्वारा सालों से कराई जा रही हिंदु-मुस्लिम डिबेटों कराने के बाद ही पैदा हुआ है।

मंदिर-मस्जिद करने के लिए मीडिया ‘अयोध्या’ चली जाती है मगर दिल्ली में आए हजारों ‘किसानों’ को नहीं दिखाती है

इससे पहले भी दिलीप मंडल दैनिक जागरण का नाम लेकर इस अखबार सहित टी.वी मीडिया की आलोचना कर चुकें हैं। दिलीप मंडल ने दैनिक जागरण का नाम लेते हुए लिखा था कि

दैनिक जागरण की छपाई स्याही से नहीं, इंसानी ख़ून से होती है। कई एंकर भी नाश्ते में इंसानी गोश्त खाते हैं। लेकिन अखिलेश से लेकर तेजस्वी और दिग्विजय सिंह जैसे नेता इनके शो में जाकर इनको विश्वसनीयता दे आते हैं। फिर वही चैनल और अख़बार इनकी कस कर बजा देते हैं।

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