हिंदी के प्रसिद्ध पत्रकार, संपादक, लेखक रामबहादुर राय को मोदी सरकार ने 2015 में पद्मश्री से नवाजा था। रामबहादुर राय को ये सम्मान अपने पत्रकारीय जीवन में कई सरकारों के कार्यकाल पर कथित निष्पक्ष कलम चलाने के लिए मिला था।

लेकिन शायद रामबहादुर राय के पत्रकारीय जीवन को आलोचनात्मक नजरिए से नहीं देखा गया है। अगर देखा गया होता तो पता चलता कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के करीबी रामबहादुर राय ने सबसे ज्यादा कांग्रेस के खिलाफ कलम चलाई है। चाहे वो जेपी आंदोनल में इनकी सक्रियता हो या बाद की पत्रकारिता ये सब कांग्रेस के खिलाफ रही। अब इस बात को ये कहकर खारिज नहीं किया जा सकता कि सबसे ज्यादा कांग्रेस की ही सरकार रही है इसलिए सरकार की आलोचना करने में क्या दिक्कत है।

क्योंकि इस बीच में अटल बिहारी वाजपेयी भी प्रधानमंत्री रहे लेकिन उनके खिलाफ रामबहादुर राय की कलम नहीं चली। जबकि ऐसा भी नहीं है कि अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में कुछ गलत नहीं हुआ।

दरअसल छात्र जीवन में ABVP से जुड़े रहे रामबाहुदर राय ने पत्रकारीय जीवन को ‘हिंदूवादी पत्रकारीय जीवन’ कहा जा सकता है। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि रामबहादुर राय आजीवन आरक्षण विरोधी, मंडल आंदोलन विरोधी रहे। जाति व्यवस्था के घोर समर्थक रहे, राम मंदिर और कारसेवा के समर्थक रहे।

मतलब एक संघ स्वयंसेवक का हर गुण और विशेषता इनमें उपलब्ध रही। और अब भी है। यही वजह है कि मोदी सरकार में इन्हें तरह तरह से लाभ मिला। चाहे वो पद्मश्री हो या IGNCA का चीफ बनाया जाना।

कितनी कॉमन सेंस की बात है कि जिस मोदी सरकार में टीवी से लेकर अखबार तक के पत्रकार सत्ता की गोदी में बैठ गए हैं। निष्पक्ष पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों और सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों को हर तरह से नुकसान पहुंचाया जा रहा है… ठीक उसी दौर में रामबहादुर राय को उनकी पत्रकारिता के लिए पद्मश्री दिया जा रहा है। मतलब जनता को बेवकूफ समझ लिया है संघ ने!

तमाम हिंदूवादी संगठन के कार्यकार्ताओं और कुछ बीजेपी नेताओं की तरह रामबहादुर राय भी संविधान को लेकर घुणा की भावना रखते हैं। रामबहादुर राय के इस स्वरूप में उनकी जाति की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। भारत में संविधान से सिर्फ कथित उच्ची जातीयों के जातिवादियों को ही दिक्कत है ये बात कई घटनाओं से साफ हो चुका है। रामबहादुर राय को भी इस सूची में रखा जा सकता है।

पद्मश्री पाने वाले रामबहादुर राय को संविधान से इतनी घृणा है कि वो उसे समुंद्र में डुबा देना चाहते हैं। 16 फरवरी को उत्तर प्रदेश में हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषीय संवाद समिति द्वारा आयोजित ‘कुम्भ : सामाजिक समरसता और संत परंपरा’ विषय बोलते हुए रामबहादुर राय ने कहा था ‘सामाजिक समरसता अंग्रेजों की देन, संविधान को समुद्र में डुबो देना चाहिए’

सामाजिक समरसता को अंग्रेजी में Social harmony कहते हैं। भारत में डॉ आम्बेडकर को सामाजिक समरसता का मसीहा कहा जाता है लेकिन रामबहादुर राय की नजर में ये यह अंग्रेजों की देन है।

रामबहादुर राय के पूरे भाषण में संविधान और आम्बेडकर के आइडिया ऑफ इंडिया को लेकर जो घृणा टपकती है उससे उनकी जातिवादी मानसिकता को समझा जा सकता है।

रामबहादुर राय कहते हैं समसरता भारतीयता का अंग नहीं, यह अंग्रेजों की देन है जिसे हम ढो रहे हैं। राय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भारतीय संविधान को समुद्र में फेंकने की अपील करते हुए कहा कि जब ऐसा होगा, तब नया संविधान तैयार करने को राह ढूंढी जाएगी। यह नई राह अपनाने से ही सामाजिक समरसता जैसा विषय स्वतः समाप्त हो जाएगा।

जिस जातिगत जनगणना की वजह से भारत में तमाम जातीयों की संख्या और उनकी समाजिक-आर्थिक हैसियत का पता चला उसे भी रामबहादुर राय अंग्रेजों की साजिश बताते हैं। उनका मानना है कि इसी जनगणना की वजह से समाज में ऊंच-नीच, छोटा-बड़ा का भेद पैदा हुआ।

इसलिए रामबहादुर राय चाहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्ष 2021 की जातिगत जनगणना को अंतिम जनगणना घोषित कर दें।

रामबहादुर राय कितने धूर्त हैं उसका अंदाजा इस भाषण से लगाया जा सकता है। जिस जाति जनगणना के लिए तमाम दलित आदिवासी संगठन संघर्ष कर रहे हैं उसे राय साहब खत्म करवाना चाहेत हैं। आखिर क्यों? शायद इसलिए क्योंकि जाति जनगणना के आंकड़ों से पता चल गाएगा कि किस तरह 10-15 प्रतिशत सवर्ण पुरुष देश के लगभग 90 प्रतिशत संसाधनों पर कब्जा किए हुए हैं और दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों, मुस्लिमों को हक मार रहे हैं।

कुंभ में रामबहादुर राय का दिया गया भाषण जातिवाद और सामंतवाद से लबरेज था। राय को न सिर्फ संविधान से दिक्कत है बल्कि उन्हें संसदीय व्यवस्था में खतरा नजर आ रहा है। उनका मानना है कि संसदीय व्यवस्था को भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरा है।

राहबहादुर राय कहते हैं कि संविधान सभा ने भारतीय व्यवस्था का अध्ययन करने की बजाय इंग्लैंड, फ्रांस, अमेरिका, चीन जैसे देशों के संविधानों का अध्ययन किया। यहीं गलती हुई। भारतीय समाज को प्राचीन भारतीय व्यवस्था के अनुरूप चलाया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

यानी कुल मिलाकर शायद राहबहादुर राय ये कहना चाहते हैं देश पहले की तरह जातिवादी मनुस्मृति के विधान से चले। ताकि कथित सवर्ण जातीयां देश के दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों को अपना गुलाम बना सके। महिलाओं का शोषण कर सकें।

समझ नहीं आता कि रामबहादुर राय जैसे जातिवादी इंसान को भारतीय समाज ने इतनी प्रसिद्धी और ख्याति किस गलतफहमी में दे दी।

ख़ैर, रामबहादुर राय के इस भाषण की कटिंग शेयर करते हुए आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली सरकार में मंत्री राजेंद्र पाल गौतम ने लिखा है ‘नरेंद्र मोदी जी ऐसे ही लोगों को ऊंचे पदों पर बिठाते हैं जो जातिवादी विचारधारा में विश्वास रखते हैं। जो भारत में वर्ण व्यवस्था को बढ़ावा देते हैं। ऐसे लोगों की जगह जेल में होनी चाहिए जो भारतीय संविधान को समुद्र में डुबोने की बात कर रहे है।’

राजेंद्र पाल गौतम ने अपने एक दूसरे ट्वीट में लिखा है ‘जिस गैर बराबरी और असमानता की बात राम बहादुर जी कर रहे है वो देश मे सदियों से है। आज जातीय वर्ण व्यवस्था को उखाड़ फेकने की जरूरत है ताकि सामाजिक समरसता सही मायनो मे स्थापित हो सके। देश सदैव ऋणी रहेगा बाबासाहेब का जिन्होने हमे संविधान के माध्यम से समान रूप से आगे बढ़ने का अवसर दिया।’

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