स्वतंत्र पत्रकार राणा अय्यूब का नाम उन चुनिंदा टॉप 10 पत्रकारों की सूची में शामिल किया गया है जिन्हें पत्रकारिता करने के लिए डराया-धमकाया जाता है. ये लिस्ट टाइम मैगज़ीन ने जारी की है.

इस लिस्ट में विश्व भर के दस पत्रकारों के नाम बताए गए हैं. राणा आयूब को पत्रकारिता जगत में उनके योगदान के लिए कई पुरुस्कार मिल चुके हैं. जिस देश में पत्रकारिता बिक चुकी है और सच्चाई छुप, वहां राणा ने खबर सामने लाने के लिए हर हद पार की है.

PM मोदी को मिला सियोल शांति पुरस्कार, गुजरात दंगों का खुलासा करने वाली राणा अय्यूब बोलीं- किसलिए?

उन्होंने 2002 गुजरात में हुए सांप्रदायिक दंगों पर अपनी किताब ‘गुजरात फाइल्स’ लिखी. लेकिन इस पत्रकारिता के चलते उन्हें कई मुसीबतों से गुज़ारना पड़ा है.

अपना नाम इस सूची में पढ़ने के बाद राणा ने ट्वीट किया है. होने लिखा है कि उन्हें नहीं मालूम की वो इस सूची में अपना नाम पढ़कर कैसा महसूस करें, ‘मै इस लिस्ट में हूं, विश्व के उन पत्रकारों में जिनकी पत्रकारिता को खतरा है.’

बीते वर्ष एक फ़र्ज़ी ट्वीट के कारण उनपर गलत आरोप लगाए गए. इस ट्वीट में लिखा था, ‘बाल बलात्कारी भी इंसान होते हैं, क्या उनका कोई मानव अधिकार नहीं है. यह हिंदुत्व सरकार बड़ी संख्या में मुस्लिमों को फांसी देने के लिए बाल बलात्कारियों की मौत के लिए अध्यादेश ला रही है. मुसलमान अब भारत में सुरक्षित नहीं हैं.’

अय्यूब ने इस ट्वीट को फ़र्ज़ी बताया था. लेकिन ये ट्वीट सोशल मीडिया पर आते ही वायरल होने लगा. अपने काम के कारण, अय्यूब को सोशल मीडिया पर उत्पीड़न की लहर का सामना करना पड़ा है. अश्लील वीडियो पर उनका चेहरा फोटोशॉप किया गया. उनका पता और फोन नंबर भी सार्वजनिक कर दिया गया था. याद होगा पिछले साल ही पत्रकार गौरी लंकेश की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2018 में भारत का स्थान 136 से गिरकर 138 हो गया है. संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने राणा अय्यूब को समर्थन दिया था जिसके बाद बरखा दत्त भी सामने आई थीं. उन्होंने कहा था कि उन्हें ऊपर से धमकी मिल रही है और 2019 तक सभी काम को रोकने के लिए कहा जा रहा है. वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार भी कई बार कह चुके हैं कि सरकार के खिलाफ बोलने के लिए उन्हें धमकी दी जाती है.

सोहराबुद्दीन केस: जब ‘मुख्य आरोपी’ ही सत्ताधारी पार्टी का ‘अध्यक्ष’ हो तो सभी को बरी होना ही था

बता दे कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 20 सालों में भारत में 47 पत्रकारों की हत्या कर दी गई है. जबकि 2014 से अब तक 11 पत्रकार मौत की सूली चढ़ चुके हैं. हम एक लोकतांत्रिक देश का हिस्सा हैं. यहां सबको अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है. अपने विचार खुलकर रखने का हक़ है.

यूं तो बहुत सरकारें आई और बदली. लेकिन मोदी राज में पत्रकारिता पर सवाल उठते रहे हैं. मीडिया की पारदर्शिता और सच्चाई पर संदेह बना रहता है. मीडिया अब गोदी मीडिया हो गई है. ये नाम पहले इतना आम तो नहीं था.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here