आज से ठीक 13 साल पहले यानी 2 जनवरी 2006 को उड़ीसा के कलिंगनगर में प्रदर्शन कर रहे आदिवासियों पर पुलिस ने जमकर गोलियां दागी थी। एक पूंजीपति के पूंजी की रक्षा में की गई इस पुलिसिया बर्बरता ने 14 आदिवासियों की जान ले ली थी।


टाटा कंपनी की सुरक्षा और आदिवासियों को बेदखल करने की कोशिश में जब 14 आदिवासियों मारे गए तो अगली सुबह राज्य के पुलिस महानिरीक्षक बीबी मिश्रा ने कहा ‘हालात अब नियंत्रण में है।’

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दरअसल आदिवासी समुदाय कलिंगनगर में बन रहे टाटा स्टील के नए कारखाने का विरोध कर रहे थे। 13 साल बाद इस घटना को याद करते हुए जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के रिसर्च स्कॉलर अतुल कुमार फेसबुक पर लिखते हैं…

‘ये एक साथ सामूहिक रूप से जलती चिताएं भारत के आदिवासियों की हैं। इन आदिवासियों को आज ही के दिन उड़ीसा के कलिंगनगर में टाटा के खिलाफ आंदोलन करते समय मार डाला गया।

ये आंदोलन किसी का कुछ छिनने के लिए नही कर रहे थे बल्कि अपनी जमीन बचाने के लिए कर रहे थे लेकिन ये आदिवासी थे इसलिए इनकी आवाज़ जंगलों में ही बंदूक की नोंक के दम पर दबा दी गयी। इन आदिवासियों के आवाज़ को दिल्ली में उठाने की ठेकेदारी करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवी जैसे लोगों के मुँह को टाटा ने साहित्य सम्मेलन, साहित्य पुरुस्कार वितरण के नाम पर भर दिया।

इसलिए इनके गले से भी कोई आवाज़ नही निकल पाई। लेकिन जिस तरीके से आज का आदिवासी युवा जग रहा है उससे ये भरोसा होता है कि अब आदिवासियों का और अधिक शोषण न होगा।’

पुलिस की गोलीबारी में शहीद हुए आदिवासियों के स्मारक/Pc- बासुदेव महापात्र

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