उत्तर प्रदेश का लखीमपुर खीरी ज़िला एक बार फिर गलत वजहों से चर्चा में है। एक 17 वर्षीय आदिवासी लड़के की पुलिस की कथित पिटाई से मौत हो गई है। ग्रामीण पुलिस कर्मियों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। विपक्षी दल के नेता योगी सरकार की कानून व्यवस्था पर सवाल उठा रहे हैं।

घटना ज़िला मुख्यालय से 110 किलोमीटर दूर सम्पूर्णानगर कोतवाली क्षेत्र के कमलापुरी गाँव का है। 17 जनवरी को आदिवासी समुदाय के राहुल पर उनके ही चाचा ने मोबाईल चोरी का आरोप लगाते हुए खजुरिया चौकी में शिकायत दर्ज करायी।

पुलिस ने पूछताछ के नाम पर नाबालिग राहुल को चौकी बुलाया। राहुल की माँ के मुताबिक, पुलिस ने राहुल को बेरहमी से पीटा। वो रोता-गिड़गिड़ाता रहा, पर पुलिस ने उसे बुरी तरह मारा।

नियम के मुताबिक, अगर पुलिस ने पूछताछ के लिए 17 जनवरी को बुलाया था। या हिरासत में लिया था तो 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना चाहिए था। लेकिन तमाम कायदों को ताक पर रखकर पुलिस ने राहुल को 19 जनवरी तक कस्टडी में रखा। इस बीच राहुल की तबीयत भी बिगड़ी। 19 तारीख़ को पुलिस ने एक समझौते पर दस्तख़त करा राहुल को छोड़ दिया।

बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राहुल की बहन बताती हैं कि जब राहुल की तबीयत बिगड़ी तो पहले यहीं से दवा ली। पर ज़्यादा तबीयत ख़राब हुई तो इलाज के लिए उन्हें पलिया के गुप्ता हॉस्पिटल ले जाया गया। वहाँ शनिवार-रविवार की दरमियानी रात दो बजे राहुल ने दम तोड़ दिया।

ग्राम प्रधान के मुताबिक, घर लौटने पर राहुल और उनके चाचा के बीच झड़प भी हुई थी। सवाल उठता है कि राहुल की मौत पुलिस की कथित पिटाई से हुई या चाचा के साथ हुई झड़प से?

क्या ये योगी सरकार की ‘ठोक दो’ नीति का दुष्परिणाम है? वैसे भी उत्तर प्रदेश की पुलिस पूरे देश में कुख्यात हो चुकी है। हिरासत में मौत के मामलों में उत्‍तर प्रदेश पहले नंबर पर है। यूपी में पिछले तीन साल में 1,318 लोगों की पुलिस और न्‍यायिक हिरासत में मौत हुई है। एनएचआरसी के आंकड़ों से पता चलता है कि देश में हुई हिरासत में मौत के मामलों का करीब 23% उत्तर प्रदेश के हिस्से जाता है।

ये एक अजीब सा ट्रेंड है। योगी सरकार अपराधियों के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की बात कर रही है। पुलिस को ‘ठोक दो’ का आदेश प्राप्त है। बावजूद इसके उत्तर प्रदेश में अपराध लगातर बढ़ रहे हैं। उत्तर प्रदेश हत्या, दलित उत्पीड़न, हिरासत में मौत, नागरिक अधिकारों के हनन के मामले में नंबर-1 पर है। बलात्कार के मामले में दूसरे नंबर पर है। महिलाओं के लिए देश में सबसे असुरक्षित राज्य उत्तर प्रदेश।

अगर उत्तर प्रदेश में ‘ठोक दो’ की नीति से अपराध कम नहीं हो रहा, तो हो क्या रहा है। इसका जवाब भी एनसीआरबी के आंकड़ों में छिपा है। योगी सरकार में पुलिस को खुली छूट देने से UP में मानवाधिकार घुटने टेक चुका है।

पिछले तीन वित्त वर्षों से 31 अक्टूबर 2021 तक आए मानवाधिकार उल्लंघन के कुल मामलों के तक़रीबन 40 फीसदी अकेले उत्तर प्रदेश से हैं। यानी पूरे देश में सबसे ज्यादा मानवाधिकार का उल्लंघन योगी शासित उत्तर प्रदेश में हो रहा है।

ये पहला वर्ष नहीं है जब यूपी मानवाधिकार उल्लंघन के लिए कुख्यात हुआ हो। योगी सरकार ने इस मामले में कृतिमान स्थापित कर दिया है, उत्तर प्रदेश लगातार तीन वर्षों से मानवाधिकार उल्लंघन सूची में शीर्ष स्थान प्राप्त कर रहा है।

नाबालिग आदिवासी हत्या मामले में समाजवादी पार्टी ने योगी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है, ”भाजपा सरकार में कस्टोडियल डेथ में नंबर वन यूपी में एक और पुलिस किलिंग! “मेरे भाई को इतना मारा की उसकी जान चली गई” लखीमपुर खीरी में पुलिस की पिटाई से 17 वर्षीय युवक की मृत्यु अत्यंत दु:खद! रोते बिलखते परिजनों की फरियाद सुन उन्हें न्याय दें सीएम। जनता वोट से देगी जवाब।”

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