नोटबंदी को 5 साल से ज्यादा का समय बीच चुका है। कभी मास्टर स्ट्रोक की तरह पेश किए गए नरेंद्र मोदी के इस कदम को आज भाजपा अपने उपलब्धियों की सूची में जगह तक नहीं देती। इस नज़रअंदाजी की वजह भी है।

दरअसल नोटेबंदी का ऐलान करते हुए पीएम मोदी ने दावा किया था कि इस कदम से कालाधन पर लगाम कसेगी, अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा और आतंकवाद के वित्तपोषण के लिए अवैध और नकली नकदी के उपयोग में कमी आएगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

कई रिपोर्ट्स से ये साबित हो चुका है कि नोटबंदी से ना तो कालाधन वापस आया, ना अर्थव्यवस्था को मज़बूती मिली, ना आतंकवाद और नक्सलवाद पर लगाम लगी। इतना ही नहीं आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट से ये भी साफ कर दिया है कि नोटबंदी के बाद 500 और 1000 के 99.3 फीसदी नोट बैंकों में वापस आ गए।

ऐसे में मोदी सरकार का नोटबंदी से बचना लाजमी है। लेकिन विपक्षी दल के नेता आज भी नोटबंदी का मुद्दा उठाते रहते हैं। अभी हाल में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता पीयूष मिश्रा ने व्यंग करते हुए लिखा है ”जो बैंककर्मी कलतक मुझे नोटबंदी के फायदे गिना रहे थे, उन्हें मैं आजकल आत्मनिर्भर होने के फायदे गिना रहा हूँ।”

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here