मोदी सरकार के ख़िलाफ़ मुखर होकर आवाज़ उठाने वाले गुजरात के बर्ख़ास्त आईपीएस संजीव भट्ट को 30 साल पुराने मामले में जामनगर सेशन कोर्ट ने उम्रकैद की सज़ा सुनाई है।

संजीव पर आरोप है कि उन्होंने 30 साल पहले जामनगर में भारत बंद के दौरान थाने में एक व्यक्ति की पिटाई की थी, जिसके बाद उस व्यक्ति की कस्टडी में मौत हो गई थी। इसी मामले में सुनवाई करते हुए जामनगर सेशन कोर्ट ने संजीव भट्ट संजीव भट्ट और उनके सहयोगी को दोषी करार दिया है। कोर्ट ने दोनों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। इसके साथ ही इस मामल में बाकी बचे पांच आरोपियों की सजा का एलान बाद में किया जाएगा।

कोर्ट के इस फैसले के बाद माना जा रहा है कि संजीव भट्ट को ये सज़ा मोदी सरकार की आलोचना के नतीजे में मिली है। कांग्रेस नेता शमा मोहम्मद ने तंज़ कसते हुए ट्विटर के ज़रिए कहा, “नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ हलफ़नामा दायर करने वाले संजीव भट्ट को 30 साल पुराने केस में उम्रकैद की सज़ा मिलती है”।

उन्होंने आगे लिखा, “वहीं पीएम मोदी की प्रशंसा करने वाली प्रज्ञा ठाकुर को संसद भेज दिया जाता है, जबकि वह आतंकवाद के केस में आरोपी हैं। क्या न्याय अंधा है या फिर झुका हुआ है”? 

किस मामले में संजीव भट्ट को हुई सज़ा?

दरअसल, 1990 में जामनगर में भारत बंद के दौरान हिंसा हुई थी। भट्ट उस वक्त जामनगर के एएसपी थे। इस दौरान 133 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया, जिनमें 25 लोग घायल हुए थे और आठ लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। पुलिस कस्टडी में रहने के दौरान एक आरोपी प्रभुदास माधवजी वैश्नानी की मौत हो गई थी। भट्ट और उनके सहयोगियों पर पुलिस हिरासत में मारपीट का आरोप लगा था।

इस मामले में संजीव भट्ट व अन्य पुलिसवालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था, लेकिन गुजरात सरकार ने मुकदमा चलाने की इजाजत नहीं दी। लेकिन 2011 में राज्य सरकार ने भट्ट के खिलाफ ट्रायल की अनुमति दे दी।

फिलहाल संजीव भट्ट साल 1996 में कथित तौर पर मादक पदार्थ रखने के मामले में जेल में हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दायर की गई जमानत याचिका को खारिज कर दिया था।

बुधवार (12 जून) को सुप्रीम कोर्ट ने संजीव भट्ट की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था। भट्ट ने याचिका में अपने खिलाफ हिरासत में हुई मौत के मामले में गवाहों की नए सिरे से जांच की मांग की थी।

गुजरात हाई कोर्ट ने उनके खिलाफ मुकदमे के दौरान कुछ अतिरिक्त गवाहों को गवाही के लिए समन देने के उनके अनुरोध से इनकार कर दिया था। गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि निचली अदालत ने 30 साल पुराने हिरासत में हुई मौत के मामले में पहले ही फैसले को 20 जून के लिए सुरक्षित रखा है।

जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस अजय रस्तोगी की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने गुजरात सरकार व अभियोजन पक्ष की दलील को माना कि सभी गवाहों को पेश किया गया था, जिसके बाद फैसला सुरक्षित रखा गया है। अब दोबारा मुकदमे पर सुनवाई करना और कुछ नहीं है, बल्कि देर करने की रणनीति है।

बता दें कि साल 2002 में गोधरा दंगे के बाद बीजेपी के साथ भट्ट का कई मुद्दों पर टकराव हुआ है। उन्होंने दंगों को लेकर राज्य की तत्कालीन नरेंद्र मोदी सरकार पर गंभीर आरोप लगाए थे। भट्ट को गृह मंत्रालय ने अगस्त 2015 में ‘सेवा से अनाधिकृत रूप से अनुपस्थित’ रहने की वजह से पद से बर्खास्त कर दिया था।

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