फ़ॉरवर्ड प्रेस हिंदी के संपादक सिद्धार्थ लिखते हैं- कल्लूरी ही कांग्रेस और इस व्यवस्था का असली चेहरा है।

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विशाल बहुमत से छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने वाली कांग्रेस ने शिवराम प्रसाद कल्लूरी को एंटी करप्शन ब्यूरो और ईओडब्लू का महानिरीक्षक बनाया गया। ऐसा करके कांग्रेस ने उन्हें बड़ा ओहदा और सम्मान दिया है।

ये वही कल्लूरी हैं, जिसके नेतृत्व में (बस्तर रेंज के आईजी के रूप) में बड़े पैमाने पर माओवादी कहकर आदिवासियों की हत्या को अंजाम दिया, आदिवासी महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया, पत्रकारों को जेल भेजा गया और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को फर्जी मुकदमों में फंसाया गया।

आदिसासियों के लिए कल्लूरी अबतक के सबसे क्रूर और नृशंस पुलिस अधिकारी के रूप में सामने आया था। भाजपा को भी उसे हटाना पड़ा था। कल्लूरी के खिलाफ रेप के भी आरोप लगे हैं। लेदा नामक महिला ने आरोप लगाया कि कल्लूरी ने उसके नक्सली पति को आत्मसमर्पण के लिए बुलाया लेकिन उसे गिरफ्तार न करके उसे गोली मार दी और खुद उसके साथ रेप किया।

नंशस हत्यारे और बलात्कारी कल्लूरी को उंचा ओहदा और सम्मान देकर कांग्रेस ने यह संकेत दे दिया है कि वह आदिवासियों और उनके संघर्ष का समर्थन करने वाले के साथ क्या करने वाली है। असल बात यह है कि भाजपा-मोदी को चुनावों में हराने के लिए भले ही कांग्रेस का जितना उदार चेहरा प्रस्तुत किया जाए, लेकिन सच्चाई यह है कि कल्लूरी ही कांग्रेस का असली चेहरा हैं।

आजकल मनमोहन सिंह को संत के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश हो रही है, ये वही संत है, जिन्होंने आदिवासियों (माओंवादियों-नक्सलियों) को देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा कहकर उनके लिए युद्ध का ऐलान किया था। आजकल महान उदारवादी और बुद्धजीवी के रूप मे पेश आ रहे है, चिदंबरम ने ही आपरेशन ग्रीन हंट चलाया था और सलवा जुड़म खड़ा करने में महान योगदान दिया था।

सच तो यह है कि आजादी के बाद से ही कांग्रेस के उदारवादी मुखौटे के पीछे हमेशा एक कल्लूरी छिपा रहा है। मुखौटे के पीछे छिपे इसी कल्लूरी ने तेलंगाना के हजारों किसानों के सीने में गोलियां उतार दी थीं और महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया था। 1 जनवरी 1948 को ही करीब 2 हजार आदिवासियों को खारसाम में मार डाला था। न जाने कितनी ऐसी अन्य चीजें।

नेहरू हो या इंदिरा, राजीव गांधी हो या मनमोहन या आज के युवराज और कल के राजा राहुल गांधी इन सब मुखौटों के पीछे एक कल्लूरी छिपा है। जिसका काम इस देश में पूंजीवाद-ब्राह्मणवाद की रक्षा करना है। देश का जन विवश है, उसके सामने हर बार किसी न किसी कल्लूरी को ही विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया जाता है और उनमें किसी एक कल्लूरी को चुनना उसकी विवशता होती है। पता नहीं कब इसे देश को कल्लूरियों से मुक्ति मिलेगी। एक कल्लूरी जाता है, उसका स्थान दूसरा कल्लूरी ले लेता है। 2019 के आम चुनावों में भी एक कल्लूरी हटेगा, तो दूसरा आ जायेगा।

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