जहां एक तरफ खबर आ रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दक्षिण कोरिया में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए सियोल शांति पुरस्कार दिया गया है वहीं दूसरी तरफ खबर है कि सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश से लाखों आदिवासियों को विस्थापित होना पड़ेगा ।

इन दोनों खबरों का अपना अलग अलग महत्व है लेकिन दूसरी खबर न सिर्फ बड़ी है बल्कि एक बहुत बड़ी आबादी को प्रभावित करने वाली है। कहा जा रहा है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार ने आदिवासियों के अधिकारों का बचाव नहीं किया।

लाखों आदिवासियों के मानवाधिकारों की रक्षा करने में नाकाम मोदी सरकार को लोग सोशल मीडिया पर लताड़ लगाना शुरू कर चुके हैं।

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सियोल शांति पुरस्कार की खबर के बाद फेसबुक पर दीपाली दास लिखती हैं-

‘ये सरकार इतनी शांतिप्रिय है कि उनके वकील सुप्रीम कोर्ट में आदिवासियों की जमीन के लिए लड़ना तो दूर उनका पक्ष रखने के लिए भी वहाँ नहीं पहुँचे, लिहाजा कोर्ट ने 13 फरवरी को बीस लाख के करीब आदिवासियों को जंगल से निकालने का फरमान दे दिया गया है।

प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद से नरेंद्र मोदी जिस तरह से हर गम्भीर मामले पर चुप रहे हैं, उन्हे नोबेल शांति पुरस्कार से नीचे कुछ भी नहीं दिया जाना चाहिए’

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