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TANYA YADAV 

भारत की कल्पना चावला 1990s, यानी कि बीसवीं सदी में ही अंतरिक्ष का दौरा कर आई थीं. लेकिन इक्कीसवीं सदी में जीने वाली भारत की लड़कियों को अब भी बुनियादी अधिकारों के लिए जूझना पड़ रहा है. NASA की टेक्नोलॉजी इस्तेमाल करना तो दूर, उनके मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल करने पर भी कुछ लोग सवाल खड़े कर देते हैं.

अब गुजरात के बनासकांठा जिले को ही ले लीजिए. यहाँ के ठाकोर समुदाय ने एक अजीबो-ग़रीब फरमान जारी किया है. उनके मुताबिक अविवाहित लड़कियों को मोबाइल फ़ोन रखने की इजाज़त नहीं है. साथ ही एलान किया गया कि अगर वहां के नौजवान अंतर-जातीय विवाह करते हैं तो उनके माँ-बाप पर जुर्माना भी लगाया जाएगा.

दरअसल, इस फरमान को बिना किसी विरोध के 14 जुलाई को पारित किया गया था. इसको बनासकांठा जिले के दांतीवाड़ा तालुका के 12 गावों के “बड़ों” ने मिलकर जारी किया है. इस फरमान को जारी करने वाले लोग ठाकोर समुदाय से आते हैं.

ठाकोर समुदाय के लोगों ने फैसला किया है कि अविवाहित लड़कियों को मोबाइल फ़ोन नहीं दिया जाएगा ताकि वो अपनी पढ़ाई पर ध्यान लगा सकें. हैरानी की बात तो ये है कि इस रूढ़िवादी फरमान को राजनीति जगत के लोगों का भी समर्थन मिल रहा है.

कांग्रेस विधायक गेनीबेन ठाकोर का कहना है कि लड़कियों के मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल पर बैन लगाना सही फैसला है और इसमें कुछ गलत नहीं है. उनके हिसाब से लड़कियों को पढ़ाई लिखाई पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए. गेनीबेन ठाकोर खुद एक महिला हैं और फिर भी इस बैन का समर्थन कर रही हैं.

जिस दौर में मोबाइल फ़ोन खुद जानकारी का बड़ा जरिया बन चुका है, लड़कियों को पढ़ाई का हवाला देकर इससे दूर रखना समझ से परे है.तकनीकि सुविधाएं होते हुए भी उसके इस्तेमाल से वंचित कर दी गई ये लड़कियां अंतरिक्ष में पहुंचने वाली कल्पना चावला से कैसेप्रेरणा लेंगी? इन लड़कियों को शुरुआत से ही ये देखने को मिल रहा है की लड़के मोबाइल फ़ोन रख सकते हैं, लेकिन वो नहीं. अब वो अपनी ताक़त लड़के-लड़की के इस फर्क से लड़ने में लगाएं, या फिर आगे बढ़ने में?

बनासकांठा जिले के ठाकोर समुदाय ने ये जता दिया है कि वो लड़का और लड़की में भेद-भाव करते हैं, साथ ही उन्होनें ये भी जताया है कि वो जातियों में भी भेद-भाव करते हैं.

ठाकोर ने ये कहा है कि अगर उनके समुदाय के नौजवान अंतर्-जातीय विवाह करते हैं तो उनके माँ-बाप पर 1.5 लाख और 2 लाख रूपए का जुर्माना लगाया जाएगा.

लेकिन जब भारतीय कानून के मुताबिक अंतर्-जातीय विवाह कोई जुर्म ही नहीं है तो जुरमाना कैसा?

हालाँकि, ठाकुर समुदाय के लोगों ने ये भी फैसला लिया है कि शादियों पर फ़िज़ूल खर्च नहीं किया जाएगा. पैसों का इस्तेमाल समुदाय के लोगों की शिक्षा पर किया जाएगा. इस फैसले को लोग समुदाय के हित में देख रहे हैं.

अल्पेश ठाकोर का कहना है की वो शादियों में फ़िज़ूल खर्च पर रोक लगने का समर्थन करते हैं. हालाँकि उनके हिसाब से मोबाइल फ़ोन पर रोक लगने वाला फैसला लड़के और लड़की दोनों के लिए होना चाहिए.
डिजिटल इंडिया के इस दौर में जहाँ एक क्लिक पर तमाम जानकारी हासिल की जा सकती है, मोबाइल फ़ोन पर रोक लगाना बहुत ही सख़्त कदम है.

अल्पेश ठाकोर ने अंतर्-जातीय विवाह पर लगाई गयी रोक पर भी ठोस आपत्ति नहीं जताई. हालांकि उन्होंने कहा कि मेरी खुद कि लव मैरिज हुई है.

ठाकोर समुदाय का ये फरमान जहाँ एक तरफ रूढ़िवादी है तो वहीँ दूसरी तरफ संविधान और कानून के भी खिलाफ है. कोई कानून ये तो  कतई नहीं कहता की ऐसी पाबंदी लड़कियों पर ही होनी चाहिए.

जब देश में पहले से ही संविधान और तमाम कानून मौजूद है, तो ठाकोर समुदाय के इस दूसरे कानून की क्या ज़रूरत है? इस फरमान में से केवल जातिवादी और पितृसत्तातमक सोच की बू आती है.

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