2 अप्रैल 2018 को एससी-एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए संशोधन के ख़िलाफ़ दलित संगठनों ने भारत बंद किया था। हिंसा के दौरान मारे गए दलितों की याद में कल 13 जनवरी को दिल्ली में एक सम्मान कार्यक्रम आयोजित किया गया था।
इस कार्यक्रम में कई लोगों के साथ मुज़फ़्फ़रनगर के गोडला गाँव के रहने वाले सुरेश कुमार भी आए थे, जिनका बेटा आंदोलन में मारा गया था।
सुरेश कुमार कहते हैं कि, “एक पुलिस वाले ने मेरे बेटे की हत्या की। और बदले में मुझसे कहा गया कि मैं अपने बेटे के क़ातिल के रूप में किसी मुसलमान का नाम ले लूँ तो मुझे 10 लाख रुपये बतौर मुआवज़ा मिलेगा।“
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सुरेश बताते हैं कि, “बेटे की हत्या का आरोपी पुलिसवाला मुझे उठाकर पुलिस स्टेशन ले गया। उसने मुझसे कहा कि मैं अपने बेटे के हत्यारे के रूप में किसी भी मुसलमान का नाम ले लूँ। ऐसा करने से मुझे मुआवज़ा मिलेगा। सुरेश कहते हैं कि, मैंने इनकार करते हुए कहा कि मैं जानता हूँ कि तुमने ही मेरे बेटे को मारा है। इतना कहने पर पुलिस वाला मुझे मेरी जाति को लेकर गाली देने लगा और पिटाई की धमकी दी“
सुरेश नम आँखो से कहते हैं- “मैं अपने बेटे के लिए इंसाफ़ की लड़ाई नहीं लड़ सकता। किसी भी पड़ोसी ने हमारी मदद नहीं की।“
मालूम हो कि, भारत बंद के दौरान 13 अप्रैल को पुलिस की गोलीबारी में 13 लोगों की मौत हो गई थी। इन्ही में सुरेश का बेटा भी शामिल था। लेकिन सुरेश कहते हैं कि मै जानता हूँ कि मेरे बेटे को किसने मारा है।
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मुज़फ़्फ़रनगर के एक गाँव में रहने वाले सुरेश बताते हैं कि, “मैं दिहाड़ी का काम करता हूँ। मेरा बेटा भी दिहाड़ी का काम करता था। वो शहर में किसी काम की खोज में गया था। काम नहीं लगा तो वो मुज़फ़्फ़रनगर रेलवे स्टेशन आ गया जहाँ कुछ दलित लडके प्रदर्शन कर रहे थे। लड़कों के ने बताया था कि एक पुलिस वाले ने मेरे बेटे को क़रीब से सीने में गोली मारी थी”