भाजपा नेताओं के साथ-साथ अब राम नाम की राजनीति करने वाले अन्य संगठनों के भी बुरे दिन आ गए हैं। उनके आह्वान पर ना लोग जुट रहे हैं और ना ही उनके मंसूबों को अंजाम दे पा रहे हैं।
अयोध्या में राम मंदिर के नाम पर की जा रही सांप्रदायिक राजनीति कब फ्लॉप शो देखकर यही लग रहा है कि अब देश ने मंदिर मस्जिद की राजनीति से नाता तोड़ लिया है।
25 नवंबर को आई तस्वीरों से साफ हो गया कि लाखों की भीड़ जुटाने का दावा करने वाली विश्व हिंदू परिषद और शिवसेना ने बमुश्किल हजारों लोगों को ही इकट्ठा किया।
धर्मसभा और विशाल जनसभा के नाम पर इन संगठनों का ऐसा मजाक उड़ा कि गोदी मीडिया ने भी जमकर मजे लिए।
नवभारत टाइम्स ने लिखा- ‘नारे लगाते आए, चुपचाप लौटे’
साथ ही सब-हेडिंग दिया- आपस में भिड़े संत, मंच से उठ कर चले गए जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य’
सोशल मीडिया पर अखबार की एक अन्य कटिंग साझा की जा रही है, जिसके मुताबिक-
5 घंटे चलने वाली धर्म सभा सिर्फ 3:30 घंटे चली,
ढाई लाख की भीड़ का अनुमान था और लाख लोग भी नहीं पहुंचे
इन दिनों तमाम खबरें आ रही हैं कि मोदी और शाह की रैलियों में भी लोग नहीं जुट रहे हैं और एक वायरल ऑडियो के दावे के मुताबिक मोदी की रैलियों के लिए पैसे देकर भीड़ बुलानी पड़ रही है।
खैर, ये तो बीजेपी की बदहाली की तस्वीर थी लेकिन धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले अन्य संगठनों को भी अयोध्या से सीख मिल गई है कि अब मंदिर मस्जिद के नाम पर लोग इकट्ठा होना बंद कर चुके हैं।