करीब दो वर्ष पूर्व मंदसौर (मध्य प्रदेश) में वहाँ की पुलिस ने प्रदर्शन कर रहे किसानों पर गोली चला दी, 5 किसान मारे गये और देश में संसद से सड़क तक भूचाल सा आ गया..

राहुल गाँधी वहाँ पहुचते हैं, आंदोलन की चेतावनी देते हैं, तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज चौहान मरहम लगाते तमाम मुआवजों की घोषणाएँ करते हैं.. शासन प्रशासन के सारे अधिकारी नाप दिए जाते है और मृतकों के परिवार के साथ सारे देश की सहानुभूति पैदा हो जाती है..

जम्मू कश्मीर के पुलवामा में हुई सेना की गोलीबारी से 7 नागरिकों की जान चली गई पर देश अपने में मस्त है, ना कोई राहुल गाँधी नज़र आए ना वहाँ का शासन प्रशासन पीड़ितों के साथ दिखा ना किसी मुआवजे का ऐलान हुआ ना किसी अधिकारी की बर्खास्तगी हुई और ना ही देश को उन 7 पीड़ित परिवारों के प्रति सहानुभूति पैदा हुई..

कश्मीर भी भारत का अभिन्न अंग है, तो मध्यप्रदेश भी भारत का अभिन्न अंग है.. परन्तु देश के लोगों और सरकारों की एक जैसी घटनाओं पर दो अलग अलग दोगलापन रवैय्या यह दिखाता है कि क्यों कश्मीरी भारत और भारतीयों से नफरत करते हैं??

कहीं ना कहीं उसकी वजह हम, आप और देश की यह सरकारें ही हैं जो वहाँ निर्दोश लाशें गिरा कर भारत और भारतवासियों के प्रति कश्मीरियों में घृणा पैदा कर चुके हैं और सिलसिला बदस्तूर जारी है..

कश्मीर यदि आज “फिलिस्तीन” बनने के बेहद करीब है तो इसका एकमात्र कारण है कि भारत, इज़राइल बन चुका है और हम भारतीय यहूदी..

कश्मीर में सेना की गोली से जो सात कश्मीरी मारे गये उनमें 2 नाबालिग लड़को में से एक 14 वर्षीय क्रिकेटर आकिब भी है, जो देश के लिए खेलने का सपना संजोए प्रतिदिन पसीना बहाता था.. सेना ने उसके सिर में सीधे गोली मारी है जिसकी वजह से मृत्यु हो गई है..

आकिब के घर वाले अब इंतज़ार कर रहे है कि 26 जनवरी को राजपथ की परेड पर उनके बच्चे को मारने के लिए किसको सम्मनित किया जायेगा, किसे परमवीर चक्र और वीर चक्र प्रदान किया जाएगा..

वहीं सेना की गोली से मरने वाले 17 वर्षीय छात्र लियाक़त अहमद के पिता के अनुसार “मेरा बच्चा स्कूल से आते ही हमारे साथ काम मे हाथ बटाता था, लोगों के घरों से दूध इकठ्ठा करके बेचते थे, क्रिकेट का शौकीन था और उसको भी मार दिया गया”

वही इंडोनेशिया से एमबीए करके अपनी बीवी के साथ पुलवामा आये हुसैन इंडोनेशियाई को भी मौत की नींद सुला दिया गया है..

समझिए कि किस तरह से सरकार राजनीति करने के लिए आतंकवादियो के बहाने आम नागरिकों की हत्या कर राजनीतिक रोटियां सेक रही है और इसीलिए वहाँ सरकार बनने की संभावना समाप्त करके राज्यपाल शासन लगाया गया है..

दरअसल सरकार को कश्मीर तो चाहिए लेकिन कश्मीरी नही और इसका कारण उनका मुसलमान होना है क्योंकि मुसलमान की हर एक लाश इनके राजनैतिक भोज को स्वादिष्ट बनाती है..

बाकी अखलाक के हत्यारोपी को ₹25 लाख और तिरंगे में लपेट कर राजकीय सम्मान के साथ अंत्येष्टि और बुलंदशहर में इंस्पेक्टर की हत्यारी भीड़ का एक शख्स सुमित को ₹10 लाख का इनाम उनके बहुसंख्यक होने के कारण ही है.. परन्तु मारे गये निर्दोष कश्मीरियीं की जान की कीमत कुछ भी नहीं..

दरअसल भारत की सरकारों को केवल ज़मीन के उस बेसकीमती टुकड़े को पा लेने की ज़िद है चाहे इसके लिए वहाँ के कितनी लोग ही मार क्यों ना दिए जाएँ.. इनका “इंसानियत और कश्मीरियत” का नारा एक ढोंग और झूठा है और कुछ नहीं..

तो बस मारते रहिए, देश के दुश्मन यही चाहते हैं..

  • देव चटर्जी की फेसबुक वॉल से साभार 

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