आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 71वीं पुण्यतिथि है। पूरा देश गांधी के विचारों को याद कर रहा हैं। उनकी हत्या करने वाली विचारधारा की निंदा कर रहा है। लेकिन खुद को दुनिया का सबसे बड़ा संगठन कहने वाली संस्था ‘RSS’ राष्ट्रपिता की पुण्यतिथि पर चुप्पी साधे हुए है। क्यों?
गांधी की पुण्यतिथि पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरफ से ना कोई प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई है, ना कोई ट्वीट किया गया है और ना ही कोई फेसुबक पोस्ट की गई है। एकदम सन्नाटा फैला है RSS सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर। ऐसा क्यों?
और ऐसा भी नहीं है कि RSS सोशल मीडिया पर पुण्यतिथि, जयंती, गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, सुख-दुख, पर्व-त्योहार… आदि पर प्रतिक्रिया नहीं देता। कल ही (29 जनवरी) जब पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस का निधन हुआ तो RSS ने फेसबुक और ट्वीटर पर शोक व्यक्त किया। प्रेस विज्ञप्ति भी जारी की।
इससे पहले गणतंत्र दिवस की बधाई भी दी थी। मकर संक्रान्ति, लोहड़ी, पोंगल, बिहू एवं उत्तरायण पर्व की शुभकामनाएँ भी दी थी। गुरु ग्रंथ साहिब के प्रकाश पर्व पर भी ट्वीट किया है। स्वामी विवेकानंद की जयंती पर तीन-तीन ट्वीट किया है। 12 नवंबर को बीजेपी नेता अनंत कुमार के निधन पर भी शो व्यक्त करते हुए ट्वीट किया था।
कहने का मतलब ये है कि जब लोहड़ी, पोंगल, बिहू, उत्तरायण पर RSS ट्वीट कर सकता है। स्वामी विवेकानंद, गुरु ग्रंथ साहिब के लिए ट्वीट कर सकता है। अनंत कुमार के लिए शोक व्यक्त कर सकता है तो फिर राष्ट्र के पिता के लिए क्यों नहीं किया?
कोई जबरदस्ती नहीं है, हो सकता है भूल गए हो? लेकिन गांधी की पुण्यतिथि को RSS द्वारा भूलना, गांधी की हत्या में आरएसएस के लिप्त होने के आरोपों को बल देता है। आरएसएस के लिए महात्मा गांधी की हत्या ‘अच्छी खबर’ थी ऐसा गांधी के निजी सचिव रहे प्यारेलाल नैयर ने अपनी किताब ‘महात्मा गांधी: लास्ट फ़ेज’ में लिखा है। बीबीसी ने अपनी एक रिपोर्ट में इस किताब के हवाले से लिखा है कि…
”आरएसएस के सदस्यों को कुछ स्थानों पर पहले से निर्देश था कि वो शुक्रवार को अच्छी ख़बर के लिए रेडियो खोलकर रखें। इसके साथ ही कई जगहों पर आरएसएस के सदस्यों ने मिठाई भी बांटी थी।”
कहीं RSS आज भी मिठाई बांटने में तो नहीं व्यस्त है? वैसे बता दें कि जिस ‘आतंकी’ नाथूराम गोडसे ने गांधी की हत्या की वो आजीवन RSS से जुड़ा रहा ऐसा खुद गोडसे के परिवार वालों को कहना है। 8 सितंबर 2016 को इकनॉमिक टाइम्स को दिए इंटरव्यू में गोडसे के परिवार वालों ने कहा था कि “गोडसे ने न तो कभी आरएसएस छोड़ा था, और न ही उन्हें निकाला गया था”
नाथूराम गोडसे और विनायक दामोदर सावरकर के वंशज सत्याकी गोडसे ने कहा था ”थूराम जब सांगली में थे तब उन्होंने 1932 में आरएसएस ज्वाइन किया था। वो जब तक ज़िंदा रहे तब तक संघ के बौद्धिक कार्यवाह रहे। उन्होंने न तो कभी संगठन छोड़ा था और न ही उन्हें निकाला गया था।”
ऐसे में हो सकता है कि ‘संघ’ आज गोडसे की बहादुरी को याद करने में व्यस्त हो, शायद इसलिए गांधी को याद भी नहीं कर पाया।
हालांकि 1970 में 11 जनवरी को आरएसएस अपने मुख्यपत्र ‘ऑर्गेनाइज़र’ में लिखे संपादकीय के जरिए गांधी की हत्या को ‘जनता के आक्रोश की अभिव्यक्ति’ घोषित कर चुका है। ऐसे में ये भी संभव है कि आज आरएसएस ‘जनता के आक्रोश की अभिव्यक्ति’ का जश्न मना रहा हो इसलिए गांधी की पुण्यतिथि पर ट्वीट नहीं पाया?