पिछले दिनों दुनियाभर की गरीबी और असमानता का अध्यन करने वाली संस्थान ऑक्सफेम ने अपनी नई रिपोर्ट में लोगों के बीच बढ़ी सम्पति की असमानता को उजागर किया। इस रिपोर्ट का एक पहलू ऐसा भी है जिसे अक्सर नज़रंदाज़ कर दिया जाता है।

वो पहलू है दुनियाभर में महिलाओं के साथ हो रहे आर्थिक भेद-भाव के बारे में। इस रिपोर्ट के आंकड़ों से पता चलता है कि कैसे महिलाएं गरीबों में भी सबसे गरीब हैं। महिला चाहे मजदूर हो या कोई कारोबारी, उसकी सम्पति पुरूषों के मुकाबले कम ही रहती है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं को एक ही जैसे काम करने के लिए अपने पुरुष-साथी के मुकाबले कम, या फिर ना के बराबर भुगतान किया जाता है। साथ ही सम्पति अर्जित करने की रेस में भी महिलाएं, पुरुषों के मुकाबले पीछे रह गयी हैं लेकिन इसमे उनकी कोई गलती नहीं। गलती इस आर्थिक व्यवस्था का संचालन कर रहे की है उन पितृसत्तामक मानसिकता वाले पुरूषों की है जो महिलाओं कम आंकते हैं।

महिलाओं का ये हाल जैसा दुनिया में है वैसा ही भारत में भी है। रिपोर्ट बताती है कि Global Gender Gap-2018 में इंडिया शर्मनाक 108वें पायदान पर है। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत देश में जिन 9 लोगों के पास 50% गरीब आबादी जितनी सम्पति है उनमें से एक भी महिला नहीं है।

इस रिपोर्ट से पता चलता है कि दुनियाभर की महिलाएँ पूरे साल में 710 लाख करोड़ रूपये का ऐसा काम करती हैं जिनका उन्हें कोई भुगतान नहीं मिलता। ये हैरानी की बात नहीं है, क्योंकि आज भी भारत के कई घरों में महिलाओं को बाहर काम नहीं करने दिया जाता। अगर वो काम करती भी हैं तो उन्हें या तो घटिया व्यवहार का सामना करना पड़ता है जिसका उदाहरण मी टू मूवमेंट से जुड़ी कहानियां भी हैं या फिर उन्हें अपने काम के हिसाब से पैसे नहीं मिलते हैं।

ना ही गाँव की कोई स्त्री अपने काम का सही दाम पाती है और ना ही शहर की। पिछले साल आई एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक महिलाएं पुरषों के मुकाबले कम कमाती हैं, भले ही उनके पास पुरूषों के जैसी ही एजुकेशनल क्वालिफिकेशन क्यों न हो।

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पुरूषों के मुकाबले महिलाओं की नौकरी जाने खतरा भी ज्यादा रहता है। बेरोजगारी को लेकर हाल ही में आई cmie की रिपोर्ट बताती है कि पिछले एक साल में जिन 1.1 करोड़ लोगों की नौकरी गई उनमें 88 लाख औरते थीं। मतलब एक तो नौकरियों का अभाव और अगर हो तो आमदनी का कोई ठिकाना नहीं।

महिलाओं का ये शोषण किसी नौकरी या मजदूरी पर नहीं रुक जाता। जिस घर वो पैदा होती है, वहां भी उसे भेद-भाव का सामना करना पड़ता है। इस पितृसत्ता समाज में लड़कियों को केवल बोझ समझा जाता है। शादी के वक्त गैरकानूनी दहेजप्रथा को तो प्रैक्टिस किया जाता है लेकिन कानून मिलने वाले जायदाद के हिस्से से वंचित कर दिया जाता है। पराया धन का चोला ओढ़ा कर घर के धन से मुक्त कर दिया जाता है। कानून होने के बावजूद भी महिलाओं को ना तो मायके से कुछ मिलता है और ना ही ससुराल से।

अब आपको एक और हैरान करने वाला आंकड़ा जान लीजिए। जैसा की पहले बताया, भारत में काम करने वाली ऐसी बहुत सी महिलाएं है जिन्हें अपने काम की कीमत नहीं मिलती। Oxfam की रिपोर्ट मुताबिक भारत की महिलाएं घर और बच्चों की देखभाल जैसे बिना भुगतान वाले जो काम करती हैं उसकी वैल्यू देश की GDP के 3.1% के बराबर है।

अब सोचिये जब महिलाओं का देश और दुनिया में ये हाल है तो आखिर ट्रांसजेंडर (LGBTQ) इस सीढ़ी पर कहाँ खड़े होंगे। हमेशा से तो ये समाज पुरूषों की जागीर रहा है, और बाकी जेंडर्स का हक मरता आया है।

गैरबराबरी की चौतरफा खाईं को कैसे पाटा जाएगा, एक तो अमीर और गरीब के बीच की अंतर, दूसरा महिला और पुरुष के बीच का अंतर। जिन सरकारों की जिम्मेदारी गैर बराबरी को मिटाना है, जब वही इस अंतर को बढ़ाते जा रहे हैं तो सुधार की कोई बड़ी उम्मीद दिख ही नहीं रही है। कम से कम मोदी राज में तो बिल्कुल नहीं।

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