Hypocrisy का हिंदी अर्थ होता है- पाखंड। पाखंड के पर्यायवाची की सूची में ‘बीजेपी’ को जोड़ा जाना चाहिए। इससे Hypocrisy का एक अर्थ ‘बीजेपी’ हो जाएगा। ये मौजूदा वक्त की सच्चाई है।

उदाहरण से समझिए…

छत्तीसगढ़ समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। छत्तसीगढ़ में पहले चरण का मतदान हो चुका है। लेकिन मतदान होने से पहले 9 नवंबर को बस्तर के जगदलपूर में पीएम मोदी ने एक चुनावी सभा की थी।

मोदी ने यहां अपने भाषण में कांग्रेस को माओवादी समर्थक बताया था। पीएम मोदी ने गोदी मीडिया और सोशल मीडिया ट्रोल्स द्वारा ईजाद ‘अर्बन नक्सल’ शब्द का इस्तेमाल करते हुए कहा था…

‘अर्बन माओवादी शहरों में, AC घरों में रहते हैं। साफ सुथरे दिखते हैं। उनके बच्चे विदेशों में पढ़ते हैं। अच्छी अच्छी गाड़ियों में बैठते हैं। लेकिन वहां बैठे-बैठे रिमोर्ट सिस्टम से हमारे आदिवासी बच्चों का जीवन बर्बाद करते हैं। और सरकार जब अर्बन माओवादियों पर कानूनी कार्रवाई करती है तो कांग्रेस उन्हें बचाने मैदान में आती है।’

इस सभा के एक दिन बाद यानी 10 तारीख को रायपुर में पार्टी का घोषणा-पत्र जारी करते हुए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी इन्हीं आरोपों को दोहराया। कुल मिलाकर बात ये है कि भाजपा छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को माओवादी समर्थक साबित करना चाहती है।

लेकिन छत्तीसगढ़ की जनता उस कांग्रेस को माओवादी समर्थक कैसे माने जिसने 2013 के नक्सली हमले में अपने वरिष्ठ नेता और सलवा जुडुम के जन्मदाता कहे जाने वाले महेंद्र करमा सहित कांग्रेस के 25 अन्य नेताओं को खो दिया था। इन 25 नेताओं में छतीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष नंद कुमार पटेल और पूर्व गृहमंत्री विद्या चरण शुक्ल भी शामिल थे।

अब सवाल उठता है कि इसमें बीजेपी की Hypocrisy अर्थात पाखंड क्या है?

तो बता दें कि इसमे बीजेपी की Hypocrisy अर्थात पाखंड है। क्योंकि जो बीजेपी छत्तीसगढ़ में नक्सलियों को देश के लिए खतरा बता रही है। और कांग्रेस नक्सली समर्थक बता रही है। वही बीजेपी पश्चिम बंगाल में नक्सलियों के समर्थन वाली पार्टी के साथ मिलकर पंचायत चुनाव लड़ चुकी है। जी हां… ये सत्य है।


26 मई 2018 के THE HINDU में प्रकाशित सुभोजित बागची की खबर के मुताबिक झारग्राम के एक ब्लॉक में बीजेपी ने आदिवासी समन्वय मंच के लिए सीट छोड़ दी थी। यानी जहां बीजेपी ने अपने उम्मीदवार खड़े किए वहां आदिवासी समन्वय मंच ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे।

और जहां आदिवासी समन्वय मंच ने अपने उम्मीदवार खड़े किए वहां बीजेपी ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे। बता दें कि आदिवासी समन्वय मंच को CPI (माओवादी) का समर्थन हासिल है।

खुद बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने इस बात को माना था कि आदिवासी समन्वय मंच से समझौता हुआ था। उन्होंने कहा था कि हमारा कोई औपचारिक समझौता नहीं है मगर हम दोनों ममता बनर्जी की टीएमसी से लड़ रहे थे। हम आदिवासी समन्वय मंच को जानते हैं और भविष्य में काम भी कर सकते हैं।

हालांकि घोष ने माओवादियों से समझौते की बात से इनकार किया था। लेकिन माओवादियों ने आदिवासी समन्वय मंच को वोट देने के लिए उन जगहों पर अपील जारी की थी जहां बीजेपी ने उम्मीदवार नहीं उतारे थे। इतना ही माओवादियों ने आदिवासी समन्वय मंच के लिए पोस्टर भी लगाए थे।

ये तथ्य बताते हैं कि बीजेपी के अंदर कितनी ज्यादा Hypocrisy है।

एक और बात… जिन नक्सलियों के खिलाफ आज पीएम मोदी और बीजेपी के अन्य नेता बड़ी बड़ी बाते कर रहे हैं। उन्हीं नक्सलियों को नरेंद्र मोदी ने ‘अपने लोग’ कह कर संबोधित किया था। गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए 20 मई, 2010 को नरेंद्र मोदी ने कहा था ‘नक्सली हमारे अपने लोग हैं।’

इतना ही नहीं खुद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने 2015 में कहा था कि ‘नक्सली धरती माता के सपूत हैं’ और उनका मुख्यधारा में ‘बच्चों की तरह’ स्वागत होगा।’

अब बताइए आज कांग्रेस को माओवादी समर्थक कहने वाली बीजेपी पाखंडी है या नहीं ? और बीजेपी की ऐसी Hypocrisy की लिस्ट लंबी है। जनता को अखंड भारत का सपना दिखाने वाली बीजेपी त्रिपुरा में IPFT के साथ मिलकर सरकार चला रह ही। IPFT वो संगठन है जो आज़ाद त्रिपुरा के लिए हिंसक संघर्ष करता रहा है।


मीडिया में कश्मीरी युवाओं को पत्थरबाज और आतंकी बताने वाली बीजेपी पत्थरबाजों का समर्थन करने वाली पीडीपी के साथ सरकार चला चुकी है।

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Hypocrisy की ऐसी मिसाल और कहां देखने को मिलेगी? ऐसे में क्यों नहीं पाखंड के पर्यायवाची शब्द के रूप में ‘बीजेपी’ को शामिल किया जाना चाहिए ?

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