”एक पत्रकार का पेशा कानूनी पेशे जितना ही महान होता है और लोकतंत्र का एक अभिन्न अंग है। एक कानूनी पेशेवर की तरह, एक पत्रकार को भी एक मजबूत नैतिकता की जरूरत होती है।” ये कहना है भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना का।
A journalist's profession is as noble as the legal profession and an integral part of democracy. Like a legal professional, a journalist also needs a strong moral fibre: CJI NV Ramana pic.twitter.com/20v3t4ImFC
— Live Law (@LiveLawIndia) December 29, 2021
पिछले कुछ समय से मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना भारतीय मीडिया की भूमिका को लेकर लगातार सवाल उठा रहे हैं। गत दिनों उन्होंने भारत में लुप्त होती खोजी पत्रकारिता पर चिंता व्यक्त की थी।
वरिष्ठ पत्रकार सुधाकर रेड्डी उडुमुला की किताब “ब्लड सैंडर्स: द ग्रेट फॉरेस्ट हीस्ट” के विमोचन समारोह में मुख्य न्यायाधीश ने कहा था, “एक व्यक्ति के रूप में जिसकी पहली नौकरी एक पत्रकार की थी, मैं वर्तमान मीडिया पर कुछ विचार साझा करने की स्वतंत्रता ले रहा हूं। दुर्भाग्य से खोजी पत्रकारिता की अवधारणा मीडिया कैनवास से गायब हो रही है। कम से कम भारत के संदर्भ में यह सच है। जब हम बड़े हो रहे थे, हम बड़े घोटालों को उजागर करने वाले समाचार पत्रों की उत्सुकता से प्रतीक्षा करते थे। समाचार पत्रों ने हमें कभी निराश नहीं किया।
अतीत में हमने घोटालों और कदाचार के बारे में समाचार पत्रों की रिपोर्टें देखी हैं जिनके गंभीर परिणाम सामने आए हैं। एक या दो को छोड़कर, मुझे हाल के वर्षों में इतने परिमाण की कोई कहानी याद नहीं है। हमारे बगीचे में सब कुछ गुलाबी प्रतीत होता है। मैं इसके निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए इसे आप पर छोड़ता हूं।”
अपने इस वक्तव्य के दौरान सीजेआई ने स्वतंत्र सोच की आदत की वकालत भी की थी। भारत के संदर्भ में मुख्य न्यायाधीश की चिंता और सुझाव दोनों ध्यान देने योग्य है। पत्रकारिता के क्षेत्र में भारत की छवि लगातार धुमिल हो रही है।
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत पत्रकारिता के लिये ‘खराब’ वर्गीकृत देशों में से है। भारत की पहचान पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक देश के रूप में बन रही है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा जारी 180 देशों के ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक’ में भारत फिर से 142वें स्थान पर है। वर्ष 2020 में भी 142वें स्थान पर ही था, इस प्रकार पत्रकारों को प्रदान किये जाने वाले वातावरण में कोई सुधार नहीं दिखाई दे रहा है। भारत का अपने पड़ोसी देशों की तुलना में खराब प्रदर्शन रहा है। इस सूचकांक में नेपाल को 106वाँ, श्रीलंका को 127वाँ और भूटान को 65वाँ स्थान प्राप्त है।