एक तरफ देश के युवा बेरोजगारी से परेशान हैं तो दूसरी तरफ रही सही नौकरियों को भी खत्म करने की तमाम कोशिशें की जा रही हैं। असंगठित क्षेत्र हो या संगठित क्षेत्र, सब जगह लाखों की संख्या में लोग नौकरियों से निकाले जा रहे हैं। वित्तीय असुरक्षा का आलम ये है कि बीएसएनएल, एमटीएनएल जैसी सरकारी कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारी भी अपनी सैलरी पाने के लिए जूझ रहे हैं।

भले ही वित्त मंत्री यह कहकर टाल रही हों कि देश की अर्थव्यवस्था में सब कुछ अच्छा है लेकिन वास्तविकता छिपाए नहीं छिप रही है। इसी से नाराज़ होते हुए जगह-जगह विरोध प्रदर्शन देखने को मिल रहे हैं। अब इन्हीं विरोध प्रदर्शनों को एकजुट करके रामलीला मैदान से मोदी सरकार को जगाने का दावा करते हुए डॉ उदित राज कहते हैं अभी नहीं तो कभी नहीं, सरकारी कंपनियों को बेचा जा रहा है, निजीकरण लागू करके आरक्षण को खत्म किया जा रहा है और न्यायपालिका में दलितों-पिछड़ों को पहुंचने से रोका जा रहा है; इसलिए जरूरी है कि सब लोग एकजुट हों और मोदी सरकार की मनमानी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाएं।

इसके साथ ही उदित राज इस बात को भी इस बात पर भी जोर देते हैं कि ईवीएम के खिलाफ सभी को गोलबंद होना होगा क्योंकि जब तक ईवीएम इस्तेमाल होता रहेगा तब तक चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष नहीं माना जा सकता।

मोदी के पुराने जुमले का जिक्र करते हुए वह कहते हैं कि मोदी ने कहा था ये देश नहीं मिटने दूंगा लेकिन अब लगता है कि वो अब कह रहे हैं कि ये देश नहीं बिकने दूंगा, मैं खुद बेचूंगा।

1 दिसंबर की रैली के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि ये रैली कई मुद्दों पर है और इसमें तमाम संगठन शामिल होंगे। सभी संगठन अपने पोस्टर बैनर और मुद्दों के साथ इसमें शामिल हो सकते हैं, जिनका ध्येय निजीकरण और तानाशाही के खिलाफ लड़ना है।

गौरतलब है कि उदित राज उत्तर पश्चिमी दिल्ली से सांसद रह चुके हैं और इन दिनों कांग्रेस में हैं। हालांकि उनका कहना है ये रैली सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर कर रहे हैं इसलिए इस महारैली को मोदी सरकार की जन-विरोधी नीतियों के खिलाफ एक आह्वान समझना चाहिए।

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