एक तरफ मोदी सरकार बैंकों के निजीकरण की तैयारियां कर रही है, तो दूसरी तरफ सरकारी बैंकों के लगभग 9 लाख कर्मचारी इसके खिलाफ देशव्यापी विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। आज इस हड़ताल का दूसरा दिन है। इसी बीच सोशल मीडिया पर एक पोस्टर वायरल हो रहा है जिसमें लिखा है- “जो ग्राहक बैंक में ये बोलकर जाते हैं कि बैंक हमारा है, हमारे पैसे से चलता है, उनके लिए ख़ास सूचना। संसद में सरकार आपका बैंक बेचने वाली है। फिर मत कहना कि बताया नहीं था। ”
फिलहाल ये तो साफ़ नहीं है कि ये तस्वीर कबकी और कहाँ की है। लेकिन इसके ज़रिए बैंकों के निजीकरण के खिलाफ सोशल मीडिया पर आवाज़ बुलंद की जा रही है।
— Surya Pratap Singh IAS Rtd. (@suryapsingh_IAS) December 17, 2021
दरअसल, केंद्र सरकार ने संसद के चालू सत्र में बैंकिंग कानून संशोधन विधेयक 2021 को पेश करने के लिए सूचीबद्ध किया था। इस विधेयक के ज़रिए दो सरकारी बैंकों का निजीकरण किया जाना है। सरकार इन बैंकों में अपनी न्यूनतम हिस्सेदारी घाटकर फीसदी कर सकती है। बैंकों के निजीकरण के फैसले के खिलाफ देशभर में पिछले दो दिनों से बैंक कर्मचारियों की हड़ताल चल रही है।
एनडीटीवी की खबर के अनुसार केंद्र सरकार इस सत्र में शायद विधेयक न ला पाए क्योंकि इसका पुरज़ोर विरोध किया जा रहा है। साथ ही, मौजूदा बाजार परिदृश्य उसे लाने के अनुकूल नहीं है।
यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन (यूएफबीयू) बैंकों के निजीकरण के प्रस्तावित फैसले का विरोध कर रहा है। इस यूनियन में बैंकों 9 और यूनियन आते हैं। हड़ताल के चलते एसबीआई, पीएनबी जैसे बैंकों के ग्राहकों को बैंकिंग कामकाज में समस्याएं आ रही हैं।
पीलीभीत से संसद वरुण गाँधी ने बैंकों के निजीकरण के मुद्दे पर कहा, “बैंकों का निजीकरण करते समय ये भी देखना चाहिए कि सरकारी बैंक लाखों लोगों को नौकरी देते हैं, सेल्फ-हेल्प ग्रुप्स की मदद करते हैं, ग्रामीण बैंकिंग उपलब्ध करवाते हैं और SME को लोन देने का काम करते हैं। ये सभी काम शायद प्राइवेट बैंक न करें।”
As we push towards privatising public sector banks, we must take pause to note that they employ almost a million, while helping self-help groups, providing rural banking and giving loans to SMEs. All things that private banks may not pursue. #BankStrike
— Varun Gandhi (@varungandhi80) December 17, 2021
पब्लिक सेक्टर के निजीकरण को लेकर अक्सर मोदी सरकार की आलोचना की जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूंजीपतियों से करीब रिश्तों पर अक्सर खबरें बनती रहती हैं। बैंकों के निजीकरण को लेकर भी सरकार पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।