Tanya Yadav

देश में जब कभी किसी राज्य में विधानसभा चुनाव होते हैं, तो विधायकों के पार्टी बदलने की खबरें आने लगती हैं।

एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट के मुताबिक 2016 से लेकर 2020 तक जितने विधायकों ने पार्टी बदल चुनाव लड़े हैं, उनमें से 45% ने भाजपा जॉइन की है।

इसका सबसे नया उदाहरण है पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले सुवेंदु अधिकारी का TMC छोड़ भाजपा में शामिल होना।

ADR का डाटा ये भी बताता है कि पार्टी बदलने वाले 42% विधायकों ने कांग्रेस छोड़ दी है। इसका मतलब ये है कि भाजपा तिकड़म लगाकर दूसरी पार्टी के नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करवाने में सफ़ल रही, तो वही कांग्रेस के विधायक पार्टी से परेशान और नाराज़ रहे।

ADR ने गुरुवार को उन 443 विधायकों और सांसदों पर अपना विश्लेषण जारी किया जिन्होंने पिछले 5 सालों में पार्टियां बदल चुनाव लड़े है।

मात्र 18 विधायकों ने भाजपा छोड़ी वहीं 182 इस पार्टी में शामिल भी हुए। पार्टी बदलने के कारण मध्य प्रदेश, मणिपुर और गोआ जैसे राज्यों में सरकारें तक गिर गई।

ADR की रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि एक लोकतांत्रिक देश में नेताओं के निजी फायदों से कही ज़्यादा महत्वपूर्ण नागरिकों का हित होता है।

“आया राम, गया राम सिंड्रोम और कभी न खत्म होने वाली सत्ता और पैसे की भूख अब हमारे सांसदों और राजनीतिक दलों के लिए आम बात हो चली है।”

इसका मतलब ये हुआ कि इस ‘सिंड्रोम’ को सबसे ज़्यादा बढ़ावा भाजपा पार्टी से मिल रहा है।

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