लॉकडाउन में अर्थव्यवस्था की बदहाली का अवसर पाकर मोदी सरकार तमाम सरकारी कंपनियों के निजीकरण का काम और तेजी से करने लगी है। इसके तहत पब्लिक सेक्ट को निजी हाथों में सौंपा जा रहा है।
पहले ये काम चोरी छुपे किया जा रहा था, किसी ना किसी बहाने से साथ किया जा रहा था लेकिन अब बकायदा वित्त
मंत्री द्वारा घोषणा करके किया जा रहा है।

अर्थव्यवस्था को सुधारने के नाम पर लिए जा रहे इस तरह के घातक फैसलों से नाराज होते हुए बैंक अधिकारियों की सबसे बड़ी संस्था ने आपत्ति दर्ज की है।

फाइनेंसियल एक्सप्रेस में छपी एक खबर के मुताबिक, ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर कॉन्फ़िडरेशन (AIBOC) ने एक स्टेटमेंट जारी करते हुए कहा ‘वित्त मंत्री ने जिस तरह से पब्लिक सेक्टर के निजी करण की घोषणा की है उससे आर्थिक सुधार और आत्मनिर्भरता तो नहीं हासिल की जा सकेगी बल्कि इसके ठीक उलट हमारी अर्थव्यवस्था की पूरी बुनियाद ही बर्बाद हो जाएगी।’

PSE के बारे में बोलते हुए संस्था ने कहा कि आपदा की तमाम परिस्थितियों में इन्हीं सरकारी सेक्टर ने देश को बचाने और बनाने का काम किया है।

इसके साथ ही यह बात भी स्पष्ट हो जाती है कि सीपीएसयू की 244 यूनिट में से अधिकतर निजी करण के निशाने पर हैं।

सोचिए ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर कॉन्फ़िगडरेशन के ये आरोप कितने गंभीर हैं कि सरकार उन कंपनियों को निजी हाथों में देना चाह रही है जो हमेशा से आपदा की स्थिति में देश को संभालती रही हैं, जिनके दम पर देश तरक्की करता रहा है।

अगर यही बात कोई विपक्ष का नेता कहता तो एक झटके में उसे देश विरोधी कहकर खारिज कर दिया गया होता, भले ही ये संस्था बता रही है कि पब्लिक सेक्टर का निजीकरण खुद में एक देश विरोधी काम है।

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