करोड़ों गरीबों-मजदूरों की ज़िंदगी से खिलवाड़! मात्र 13% राशन ही पहुंचा लोगों के पास, 87% राशन कहाँ रह गया?
प्रधानमंत्री मोदी जब भी राष्ट्र को संबोधित करते हैं, जनता के सामने बड़े-बड़े वादे करते हैं। मीडिया में आई भूखे-प्यासे मज़दूरों की तस्वीरें एक तरह से झुठलाकर उनतक राशन पहुंचाने के दावे करते हैं। लेकिन उनके दावों और ज़मीनी हक़ीक़त के बीच एक बहुत बड़ा अंतर है।
आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत सरकार द्वारा जितना राशन आवंटित किया गया था, उसका महज़ 13 प्रतिशत ही प्रवासी मज़दूरों तक पहुंच पाया है। ये आंकड़ा बेहद शर्मनाक है।
दरअसल, सरकार की घोषणा के मुताबिक़ प्रवासी मज़दूरों को हर महीने 5 किलो राशन दिया जाना था। ये घोषणा आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत की गई थी। जिन मज़दूरों के पास राशन कार्ड नहीं था, उनतक 8 लाख मीट्रिक टन राशन पहुंचाना था।
राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों तक 6.38 लाख मीट्रिक टन राशन पहुंच गया था जो कुल राशन का 80 प्रतिशत है। लेकिन मई और जून महीने में सरकार केवल मज़दूरों तक केवल 1.07 लाख मीट्रिक टन ही राशन पहुंचा पायी है। ये आवंटित राशन का 13 प्रतिशत है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 14 मई को घोषणा की थी कि 8 करोड़ मज़दूरों को हर महीने के लिए 5 किलो गेहूं या चावल मुफ़्त में दिया जाएगा। ये घोषणा आने वाले दो महीने के लिए की गई थी।
लेकिन खुद खाद्य मंत्रालय के आंकड़ों से साफ पता चलता है कि सरकारी घोषणा और काम में अंतर है। क्या आत्मनिर्भर भारत बनाने में चूक हुई है? भूखे पेट सो रहे मज़दूरों तक अगर सरकार नहीं पहुंच पाएगी, तो आत्मनिर्भर भारत कैसे बनाएगी?