सोहराबुद्दीन शेख कथित फर्जी एनकाउंटर मामले में पहले अमित शाह को और अब डीजी वंजारा समेत सभी 20 आरोपियों को बरी कर दिया गया है।

ये फैसला मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने सुनाया है जिसमें सीबीआई द्वारा सुबूतों से ये साबित नहीं होता है कि सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराम प्रजापति की हत्या किसी साजिश के तहत हुई थी।

सीबीआई जज एसजे शर्मा ने अभियोजन पक्ष कथित साजिश करने के लिए किसी भी तरह के दस्तावेज और ठोस सुबूत पेश कर पाने में असफल रहा है।

साल 2005 में हुए इस एनकाउंटर में 22 लोगों को खिलाफ केस दर्ज कराया गया था, इनमें सबसे ज्यादा पुलिसकर्मी थे। ज़्यादातर आरोपी गुजरात और राजस्थान के पुलिस अधिकारी हैं।

हैरान करने वाली बात ये भी है कि 210 गवाहों में से 95 गवाह इस मामले की गवाही देने से मुकर गए जिसके बाद अदालत ने सीबीआई के आरोपपत्र में 38 लोगों में 16 लोगों को सुबूतों के आभाव में पहले ही आरोपमुक्त कर दिया था।   

इस बीच अभियोजन पक्ष के दो गवाहों ने अदालत से अपील की कि उनसे फिर से पूछताछ की जाए। इनमें से एक का नाम आजम खान है, जो सोहराबुद्दीन का सहयोगी था।

उसने अपनी याचिका में दावा किया है कि शेख पर कथित तौर पर गोली चलाने वाले आरोपी और पूर्व पुलिस इंस्पेक्टर अब्दुल रहमान ने उसे धमकी दी थी कि अगर उसने मुंह खोला तो उसे झूठे मामले में फंसा दिया जाएगा। एक अन्य गवाह एक पेट्रोल पंप का मालिक महेंद्र जाला है।

अदालत के बरी करने को लेकर एक बात कही जा सकती है की ये सीबीआई की सबसे बड़ी नाकामी रही है। इस मामले में 10 साल से ज्यादा जेल में रहने वालें आरोपियों के साथ जो हुआ उसका जवाबदेह कौन है इस पूरे मामले में ये साफ़ नहीं हो पाया है कि आखिर एनकाउंटर हुआ ही क्यों था और अगर हुआ था इसमें सोहराबुद्दीन शेख और कौसर जहां को मारने का मकसद क्या था ।

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