भाजपा शासन में ईसाइयों पर दक्षिणपंथी हिन्दू संगठनों का हमला तयशुदा ढंग से बढ़ा है। क्रिसमस की रात नफरत का स्तर उस वक्त उरूज पर दिखा जब अंबाला में कैथोलिक चर्च में लगी 70 साल पुरानी यीशु की मूर्ति तोड़ दी गई।
अब खबर आ रही है कि केंद्र की मोदी सरकार के इशारे पर मदर टेरेसा के मिशनरीज ऑफ चैरिटी के सभी बैंक खातों को फ्रीज कर दिया गया है। केंद्रीय अधिकारियों ने पूरे भारत में इन बैंक खातों के माध्यम से सभी लेनदेन को रोकने के आदेश जारी किए हैं।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने ट्विटर के माध्यम से इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया है। उन्होंने लिखा है, ”यह सुनकर स्तब्ध हूं कि क्रिसमस पर केंद्रीय मंत्रालय ने भारत में मदर टेरेसा के मिशनरीज ऑफ चैरिटी के सभी बैंक खातों को फ्रीज कर दिया! उनके 22,000 रोगियों और कर्मचारियों को भोजन और दवाओं के बिना छोड़ दिया गया है। जबकि कानून सर्वोपरि है, मानवीय प्रयासों से समझौता नहीं किया जाना चाहिए।”
Shocked to hear that on Christmas, Union Ministry FROZE ALL BANK ACCOUNTS of Mother Teresa’s Missionaries of Charity in India!
Their 22,000 patients & employees have been left without food & medicines.
While the law is paramount, humanitarian efforts must not be compromised.
— Mamata Banerjee (@MamataOfficial) December 27, 2021
एबीपी न्यूज की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कोलकाता में चैरिटी के अधिकारियों ने कहा है कि उन्हें आदेश की जानकारी है। हालांकि उन्होंने इस मामले पर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है।
नया नहीं है ईसाई नफरत!
भाजपा की पैरेंट ऑर्गनाइजेशन आरएसएस के तीन आइडेंटिफाईड दुश्मन हैं- मुस्लिम, ईसाई और वामपंथी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रेरणा स्रोत संघ के पूर्व प्रमुख गोलवलकर ईसाइयों को ब्लडसकर यानी ख़ून चूसने वाला मानते थे। गोलवलकर की किताब ‘बंच ऑफ़ थॉट्स’ के दूसरे भाग में ‘राष्ट्र और उसकी समस्याएँ’ नाम का एक चैप्टर है। इसके 16वें हिस्से का शीर्षक है – ‘आंतरिक ख़तरे’
इस शीर्षक के तहत मुसलमान, ईसाई और कम्युनिस्ट उपशीर्षक रखे गए हैं जिनमें विस्तार से बताया गया है कि कैसे ये तीन समुदाय भारत के लिए ख़तरा पैदा करते हैं। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, किताब में ईसाइयों के बारे में लिखा है, ”ईसा ने अपने अनुयायियों से कहा कि वो ग़रीबों, अज्ञानियों और दबे कुचले लोगों के लिए अपना सब कुछ दे दें, लेकिन उनके अनुयायियों ने व्यवहारिक रूप से क्या किया? जहां भी वो गए वे ‘ख़ून देने वाले’ नहीं बल्कि ‘ख़ून चूसने वाले’ बने?”