लोकतंत्र में ऊँचे पदों पर बैठकर जनता के लिए वफ़ादार बने रहने के लिए ये ज़रूरी है कि जनता के प्रति नेता की जवाबदेही तय हो। इसके लिए जो सबसे आसान और असरदार माध्यम है, वो है मीडिया। हर एक नागरिक अपने नेता से सीधे सवाल नहीं पूछ सकता। लेकिन जनता के सवाल मीडिया के ज़रिये नेता से पूछा जा सकता है।

और ये बेहद आसान भी है। लेकिन तब क्या हो, जब नेता जनता के सवालों का सामना करना ही ना चाहे? अपने कामों का लेखा-जोखा ही ना देना चाहे? वो वादे जो उसने जनता से किए हैं सत्ता में आने के बाद उन पर बात ही ना करना चाहे?

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीएम बनने के बाद आज तक एक बार भी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं किया है। जबकि उनका साढ़े 4 साल से ज़्यादा का कार्यकाल ख़त्म हो चुका है। हाँ लेकिन उन्होंने कुछ चुनिंदा चैनलों को इंटरव्यू ज़रूर दिया है।

लेकिन उनको देखने से मालूम पड़ता है कि मानों इनके सवाल पहले से ही तय थे। ZEE NEWS को दिए इंटरव्यू में तो पीएम मोदी पकौड़ा बनाने को रोज़गार बताते हुए, बेहद चालाकी से रोज़गार के सवाल पर किनारा कर गए थे।

2014 आम चुनाव में धुआंधार चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी हर एक चैनल पर दिखाई देते थे। सत्ता में बैठी यूपीए सरकार की कड़ी और तीख़ी आलोचना करते थे।

लेकिन जब ख़ुद सत्ता में आए तो कभी मीडिया से रूबरू नहीं हुए। मोदी जी ने उस परम्परा को भी तोड़ दिया जिसे पीएम मोदी से पहले हुए प्रधानमंत्रियों ने फॉलो किया था।

वो परम्परा थी अपने साथ एक मीडिया सलाहकार रखने की। पीएम मोदी कोई मीडिया एडवाइज़र नहीं रखते और ना हीं उनके साथ विदेशी दौरों पर कोई पत्रकार जाता है।

कुछ दिनों पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने ट्वीट करके पीएम मोदी से पूछा था कि, आपने अपने कार्यकाल में अब तक एक भी प्रेस कॉन्फ़्रेंस क्यों नहीं की?

ये हुई भारतीय पीएम की बात। अब बात करते हैं भूटान के पीएम की। भूटान के प्रधानमंत्री ने ये तय किया है कि वो हर हफ़्ते एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस करेंगे। भूटान के पीएम लोटेस शेरिंग Lotay Tshering ने 7 दिसम्बर को प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर इसकी शुरुआत भी कर दी है।

भूटानी पीएम का मक़सद है कि, सरकार और मीडिया के सम्बंध बने रहने चाहिए ताकी किसी तरह की कोई भ्रम की स्थिति पैदा ना हो।

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