व्यवस्था की सबसे बर्बर तस्वीर दिखाने में यह साल सबसे अव्वल रहा है। लॉकडाउन में भी हमने कई तस्वीरें देखी जिसमें लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर पैदल ही अपने राज्य वापस लौट रहे थे। सिस्टम इससे ज़्यादा बर्बर तब हो गया जब सैंकडों किलोमीटर की पैदल यात्रा कर लौटने वाले मजदूरों पर पुलिस रास्ते में लाठियाँ भांज रही थी।
ऐसी ही एक बर्बर तस्वीर आई है बेगूसराय के बलिया से। यहाँ एक मुस्लिम युवक जिसकी पहचान 29 वर्षीय मोहम्मद अख्तर के रूप में हुई, उसकी मौत एक सड़क दुर्घटना में हो गई। पुलिस जब मौके पर पहुँची तो उसने एम्बुलेंस की जगह पिकअप बुलाकर उसका शव बिना ढंके पीछे रख दिया गया। फिर उसके शव के ऊपर उसकी बाइक भी लाद दी जिससे कहीं जाने के दौरान उसकी मौत हुई थी।
पत्रकार उत्कर्ष कुमार सिंह ने अपने फेसबुक और ट्वीटर पर ये तस्वीरें साझा कर इसकी जानकारी दी।
बिहार में इसी वर्ष चुनाव भी होने हैं जिसे लेकर तैयारियां शुरू हो गई है। लेकिन अव्यवस्था की यह तस्वीर बिहार के स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल खोल देती है। बिहार में आपात स्थिति में एम्बुलेंस उपलब्ध होना किसी सुखद अनहोनी से कम नहीं है। बिहार में एम्बुलेंस का ठेका जदयू के ही एक सांसद के परिवारों को मिला हुआ है।
जब सत्ताधारी नेता के पास ही उसकी चाबी हो तो भी राज्य की जनता ये दुर्गति झेल रही है। सवाल उठता है कि सुशासन राज में आखिर इन टेंडरों की क्या प्रासंगिकता है? क्या यह जनता के हित में दिया गया है या सत्ताधारी पार्टी के सांसद नेता के परिवारों के हित में?