मोदी के राज में विकास की गंगा उल्टी बह रही है। इसीलिए तो विकास दर माइनस में चली गई है। ठीक यही हाल नौकरियों का भी है।
कोरोना महामारी की दूसरी लहर आने के बाद से लगभग 1 करोड़ 20 लाख लोगों की ‘वेतनभोगी नौकरियां’ चली गई हैं। अब कुल मिलाकर 39 करोड़ लोगों के पास ही कोई न कोई काम बचा है।
सेंटर फॉर मोनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) की रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना की शुरुआत के वक्त से अब तक 97 प्रतिशत परिवारों की आय में काफी असर देखने को मिला है। इनकी आर्थिक हालत पहले के मुकाबले ख़राब हुई है।
सीएमआईई के मुख्य कार्यपालक अधिकारी महेश व्यास ने बताया कि अप्रैल में बेरोजगारी दर 8 प्रतिशत थी। मई में वो बढ़कर 12 प्रतिशत हो गई है।
इसका मतलब है कि 1 करोड़ 10 लाख से लेकर 1 करोड़ 20 लाख के बीच वेतनभोगी नौकरियां खत्म हुई हैं।
ध्यान देने वाली बात है कि 23 मई के अंत तक देश की साप्ताहिक बेरोज़गारी दर 14.7 प्रतिशत हो गई थी। ये आंकड़ा जून 2020 के बाद से सबसे ज़्यादा है।
इसी के साथ-साथ सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2021 में भारत की विकास दर -7.3 % तक जा गिरी है। ये पिछले 40 सालों में अब तक का सबसे खराब आंकड़ा है।
बेरोज़गारी का बढ़ना और अर्थव्यवस्था का गिरना, इसके लिए केवल कोरोना महामारी ज़िम्मेदार नहीं है। इससे पहले भी कई बाद देश की अर्थव्यवस्था चरमराई थी। साल 2019 में लेबर मिनिस्ट्री ने बताया था कि देश में बेरोजगारी बीते 45 वर्षों में सबसे ज़्यादा है।