जिस बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के संस्कृत विभाग में मुस्लिम प्रोफेसर फिरोज़ खान की नियुक्ति को लेकर विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है, उसी BHU की एक तस्वीर ऐसी भी है जो प्रदर्शन कर रहे लोगों को आईना दिखाने के लिए काफ़ी है।

दरअसल, BHU के उर्दू विभाग में पिछले चार साल से ऋषि शर्मा छात्रों को उर्दू सिखा रहे हैं। ऋषि शर्मा का धर्म हिंदू है और वह विश्वविद्यालय में मुस्लिम छात्रों को उर्दू पढ़ाते हैं। लेकिन ऋषि शर्मा के मामले में कभी भाषा को धर्म की बेड़ियों में नहीं जकड़ा गया। पिछले चार सालों में उनका न कभी विरोध ​हुआ, न ही छात्रों ने उनपर कभी सवाल उठाया।

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2015 से ऋषि शर्मा बीएचयू के उर्दू विभाग में बतौर प्रोफेसर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर आफताब अहमद अफाकी ने बताया कि यहां के उर्दू विभाग का अपना एक इतिहास रहा है, खुद मदन मोहन मालवीय जी ने उर्दू, अरबी और फारसी डिपार्टमेंट को बनाया था। तब से लेकर ब से लेकर अबतक इस विभाग में कई हिंदू प्रोफेसर ने बच्चों को उर्दू पढ़ाई है। इसपर किसी ने कभी कोई ऐतराज़ नहीं जताया।

ग़ौरतलब है कि संस्कृत विभाग में फिरोज़ खान का विरोध करने वाले छात्रों का कहना है कि कोई भी ऐसा व्‍यक्ति जो उनकी भाषा और धर्म से नहीं जुड़ा है वो उन्हें कैसे पढ़ा सकता है। वहीं उर्दू विभाग में पढ़ने वाले मुस्लिम छात्रों की बात करें तो उन्होंने कभी उर्दू को मुसलमानों की भाषा बताकर ऋषि शर्मा या किसी अन्य हिंदू प्रोफेसर की नियुक्ति का विरोध किया।

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इस मामले पर कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा, “नाम है बनारस ‘हिंदू’ विश्वविद्यालय। यहां उर्दू और संस्कृत दोनों पढ़ाया जाता है। उर्दू ऋषि शर्मा पढ़ाते हैं और संस्कृत फिरोज़ खान। भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब का इससे बेहतर उदाहरण क्या हो सकता है। कृपया इस परंपरा को यूं ही चलने दें। बड़ा अच्छा लगता है”। 

BHU के उर्दू विभाग में एक हिंदू प्रोफेसर का उर्दू सिखाना भारत की सच्ची धर्मनिर्पेक्ष तस्वीर को पेश करता है, वहीं संस्कृत विभाग में मुस्लिम प्रोफेसर का विरोध किया जाना मौजूदा वक्त की सियासत की तर्जुमानी है। क्या भारत जैसे धर्मनिर्पेक्ष देश में इस तरह की सियासत के लिए कोई जगह होनी चाहिए?

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