
बुलंदशहर हिंसा में अखलाक हत्याकांड की जांच कर रहे इंस्पेक्टर की गोली मारकर हत्या कर दी गई। क्या यह महज एक इत्तेफ़ाक है कि किसी मामले की जांच करने वाले अधिकारी को मौत के घाट उतार दिया जाए?
ऐसा पहली बार नहीं है जब किसी बड़े मामले से जुड़े जांच अधिकारी को निशाना बनाया गया हो, इससे पहले मालेगाँव धमाके की जांच कर रहे एटीएस अधिकारी हेमंत करकरे की आतंकी हमले में मौत पर भी सवाल उठे थी।
कांग्रेस नेता निर्मल खत्री ने बुलंदशहर हिंसा, अखलाक हत्या, मालेगांव ब्लास्ट और हेमंत करकरे की मौत को एक जैसा बताया है। उन्होंने कहा कि भीड़ का शिकार हुए सुबोध सिंह अखलाक हत्याकांड की जांच कर रहे थे।
उन्होंने इस पूरे मामले में कार्रवाई की थी। इस मामले का ट्रायल चल रहा था। बुलंदशहर में जिस दिन घटना हुई उस दिन उनकी गवाही थी। ऐसे में उनकी हत्या हो जाना किसी साजिश की तरफ इशारा करती है।
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कांग्रेस नेता मालेगाँव ब्लास्ट का ज़िक्र करते हुए कहा कि जिसमें प्रज्ञा ठाकुर आरोपी थी और जिस मामले की जांच हेमंत करकरे कर रहे थे उन्ही की जांच का नतीजा था कि प्रज्ञा ठाकुर को जेल जाना पड़ा मगर मुंबई हमले 26/11 में मौत हो जाती है। उन्होंने कहा कि कहीं न कहीं इस सारी हत्याएं एक साजिश की तरफ इशारा करती हैं आज जैसे हेमंत करकरे की मौत एक रहस्य बनकर रह गई है।
बुलंदशहर का ज़िक्र करते हुए कांग्रेस नेता ने कहा कि जिस क्षेत्र में हिंदू भाई मंदिर के दरवाजे मुस्लिम भाइयों के लिए खोल दें वहां ऐसी घटना कैसे घटी? आखिर अखलाक हत्याकांड में अहम भूमिका निभाने वाले सुबोध सिंह की हत्या कैसे कर दी गई इन सब कड़ियों एक साथ पिरोने की ज़रूरत है।