बीएचयू (काशी हिन्दू विश्‍वविद्यालय ) में दलित शोध छात्राओं के साथ जातिवादी भेद-भाव हो रहा है. ऐसा आरोप है कि एक शिक्षिका ने दो शोध छात्राओं से जबरदस्ती टॉयलेट साफ़ करवाया है. और ये उन्होनें सफाई कर्मचारी की मौजूदगी में कराया था.

अभी मुंबई की डॉक्टर पायल तड़वी की जातिवादी उत्पीड़न के कारण की गयी आत्महत्या की खबर थमी भी नहीं थी कि बीएचयू के इस मामले ने फिरसे समाज की ब्राह्मणवादी सोच पर सवाल खड़े कर दिए हैं.

पत्रिका में छपी खबर की मुताबिक दलित शोध छात्राओं के साथ ये जातिवादी भेद-भाव बीएचयू के महिला महाविद्यालय के गृह विज्ञान विभाग में हुआ था. इस विभाग में मार्च महीने में संगोष्ठी का आयोजन किया गया था. इसी संगोष्ठी के दौरान एक शिक्षिका ने दो छात्राओं से जबरदस्ती टॉयलेट साफ़ करवाया था. इन छात्राओं में से अनुसूचित जाती (SC ) और दूसरी अनुसूचित जनजाति (ST ) से आती हैं.

रोहित वेमुला के बाद पायल तडवी की मौत बताती है पढ़ा-लिखा समाज भी घोर जातिवादी है

शिक्षिका पर लगाए गए आरोप से समझा जा सकता है कि ये मामला भी समझ की जातिवादी सोच का हिस्सा है जिसके कारण आदिवासी पायल तड़वी का उनकी सीनियर्स के द्वारा उत्पीड़न किया जाता है. इसी सोच के कारण रोहित वेमुला भी साल 2016 में आत्महत्या जैसा दुर्भाग्यपूर्ण कदम उठाने पर मजबूर हो गए थे.

बीएचयू प्रसाशन का कहना है कि उन्होनें इस मामले के लिए जाँच कमिटी गठित की है और उससे जल्द-जल्द रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा है.

इसी पर बसपा पार्टी के प्रवक्ता सुधींद्र भदौरिया ने ट्वीट करके लिखा- BHU की दलित शोध छात्राओं से जबरन शौचालय साफ़ कराया. क्या इसी प्रकार नया भारत बना रहे हैं, और संविधान की रक्षा हो रही है?

 

बसपा प्रवक्ता के ट्वीट से समझा जा सकता है कि उनके निशाने पर भाजपा नेता नरेंद्र मोदी हैं. क्यूंकि अपने पिछले कार्यकाल में भी नरेंद्र मोदी ने न्यू इंडिया बनाने का वादा किया था. लेकिन लगता है उनके न्यू इंडिया में दलितों के अत्याचार रुकने का नाम नहीं ले रहा. अब सवाल उठता है कि क्या भाजपा ने नए भारत में दलितों का साथ नहीं है? क्या उनका विकास भारत के विकास के लिए मायने नहीं रखता?

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