राफेल मामले में मोदी सरकार फंसती जा रही है। सरकार के मंत्री जो बयान दे रहे हैं सच्चाई उसके विपरीत ही सामने आ रही है। मोदी सरकार ने सवालों के घेरे में फंसने के बाद हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को ही नाकाबिल बता दिया था जबकि डैसॉल्ट के सीईओ एरिक ट्रेपियर ने एचएएल की तारीफ की है।

एरिक ट्रेपियर ने CNBC-TV18 को दिये इंटरव्यू में मोदी सरकार के पक्ष के विपरीत कई बातें कही हैं। इंटरव्यू के दौरान ट्रेपियर से डैसॉल्ट और एचएएल के बीच सम्बन्ध के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि एचएएल से डैसॉल्ट का समझौता 2007 में ही हो गया था।

इतना ही नहीं उन्होंने एचएएल की तारीफ की और कहा कि वो खुद वर्ष 1990, से एचएएल से जुड़े रहे हैं। उन्होंने ये कहा कि डैसॉल्ट ने एचएएल के साथ समझौता किया था क्योंकि जहाज़ बनाने के मामले में एचएएल अधिकारिक रूप से भारत की सबसे प्रमुख कंपनी थी।

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ये सभी बातें मोदी सरकार के पक्ष के वितरीत हैं। क्योंकि कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा था कि डैसॉल्ट ने उनकी सरकार के पहले ही राफेल विमान के लिए रिलायंस से समझौता कर लिया था। जबकि ये बात झूठ निकली और एरिक ने भी माना कि राफेल के लिए रिलायंस से समझौता वर्ष 2015, में पीएम मोदी की फ़्रांस यात्रा के दौरान ही हुआ।

दूसरा बात, राफेल मामले में फंसने के बाद मोदी सरकार अब एचएएल को ही नाकाबिल बता रही है। रक्षा मंत्री निर्मला सिथारमण ने बयान देकर एचएएल को राफेल विमान बनाने के लिए उसकी क्षमताओं पर प्रशन उठाया था।

जानें- क्या है विवाद

राफेल एक लड़ाकू विमान है। इस विमान को भारत फ्रांस से खरीद रहा है। कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि मोदी सरकार ने विमान महंगी कीमत पर खरीदा है जबकि सरकार का कहना है कि यही सही कीमत है। ये भी आरोप लगाया जा रहा है कि इस डील में सरकार ने उद्योगपति अनिल अंबानी को फायदा पहुँचाया है।

बता दें, कि इस डील की शुरुआत यूपीए शासनकाल में हुई थी। कांग्रेस का कहना है कि यूपीए सरकार में 12 दिसंबर, 2012 को 126 राफेल विमानों को 10.2 अरब अमेरिकी डॉलर (तब के 54 हज़ार करोड़ रुपये) में खरीदने का फैसला लिया गया था। इस डील में एक विमान की कीमत 526 करोड़ थी।

इनमें से 18 विमान तैयार स्थिति में मिलने थे और 108 को भारत की सरकारी कंपनी, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल), फ्रांस की कंपनी ‘डसौल्ट’ के साथ मिलकर बनाती। अप्रैल 2015, में प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी फ़्रांस यात्रा के दौरान इस डील को रद्द कर इसी जहाज़ को खरीदने के लिए में नई डील की।

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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नई डील में एक विमान की कीमत लगभग 1670 करोड़ रुपये होगी और केवल 36 विमान ही खरीदें जाएंगें।

क्योंकि 60 हज़ार करोड़ में 36 राफेल विमान खरीदे जा रहे हैं। नई डील में अब जहाज़ एचएएल की जगह उद्योगपति अनिल अंबानी की कंपनी ‘रिलायंस डिफेंस लिमिटेड’ डसौल्ट के साथ मिलकर बनाएगी।

जबकि अनिल अंबानी की कंपनी को विमान बनाने का कोई अनुभव नहीं है क्योंकि ये कंपनी राफेल समझौते के मात्र 12 दिन पहले बनी है। साथ ही टेक्नोलॉजी ट्रान्सफर भी नहीं होगा जबकि पिछली डील में टेक्नोलॉजी भी ट्रान्सफर की जा रही थी।

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