
सिग्नेचर ब्रिज के लिए दिल्ली वासियों 14 सालों का इंतजार खत्म होने जा रहा है. राममंदिर की चर्चाओं के बीच इस इंतजार को आप दिल्ली वालों का 14 सालों का वनवास भी कह सकते है.
यह ब्रिज अपनी खुबसूरत संरचना के लिए हमेशा ही चर्चाओं में रहा है. लेकिन मुख्यतः दिल्ली के लोगों के लिए इस पुल का महत्व कुछ और ही है.
दरअसल यह ब्रिज उत्तर पूर्वी दिल्ली के उस पुल के विकल्प के तौर पर बनाया गया है जिसकी हालत आज बेहद ही खराब है. एक लेन के इस पुराने पुल पर घंटों जाम में फंसे रहना पुल के दोनों तरफ रहने वाले लोगों के लिए आम बात है. इस पुल को दिल्ली वाले वजीराबाद के पुल के नाम से जानते है. कुछ लोग घंटों इस पुल पर लगने वाले जाम में फंस कर इस पर अपना ठीक ठाक समय बिताते भी है. विकल्प के तौर पर ज्यादा दूरी तय कर कश्मीरीगेट वाले पुल से जाने को मजबूर होना पड़ता है जिसमें समय की बर्बादी थोड़ी कम हो जाती है.
इस पुल के निर्माण के दौरान दिल्ली में यमुना नदीं के ही ऊपर कई नए पुल बनकर सालों पहले चालू भी किए जा चुके हैं लेकिन दिल्ली में हुए 2010 वाले कॉमनवेल्थ खेलों से पहले तैयार हो जाने के टारगेट वाले इस पुल को आज बनते बनते 14 साल से अधिक समय हो गया है. इसी के साथ पुल के निर्माण में खर्च भी 14 सालों में तय किए खर्च से बढ़ कर दोगुना हो गया है.
2004 में जब इस पुल को बनाने के लिए एक ठोस योजना का निर्माण किया गया था तब इसकी लागत 464 करोड़ थी जो आज बढ़ते बढ़ते 1518 करोड़ से अधिक हो गई है. ये पैसा सरकार का नहीं जनता का था जिसे समय समय पर बदलती सरकारों ने पानी की तरह बहने दिया.
2004 में जब इस पुल को कागजों पर ऊतारा गया था तब दिल्ली में बीजेपी की सरकार थी. जिसके जाने के बाद 10 सालों तक दिल्ली पर कांग्रेस ने राज किया. कांग्रेस के राज में 2007 में ही इस पुल को मंजूरी मिली जिसके बाद पुल के निर्माण का काम शुरू हुआ. कांग्रेस द्वारा बनाई गई योजना के अनुसार इस पुल का निर्माण 2010 पूरा कर लेने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. फिर दिल्ली में 10 साल की कांग्रेसी शासन के बाद एक बार फिर सत्ता परिवर्तन हुआ और दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की गठबंधन सरकार बनी जो महज 49 दिन ही चल पाई.
इसके बाद दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा और एक बार फिर दिल्ली में 2015 में चुनाव कराए गए. कजरीवाल की पार्टी ने दिल्ली में एतिहासिक बहुमत प्राप्त किया और दिल्ली की 67 सीटों पर जीत दर्ज की. इसके बाद दिल्ली में नई सरकार बनने के बाद सिग्नेचर ब्रिज के निर्माण ने तेजी पकड़ ली. यह नई सरकार की सक्रियात के कारण हुआ ही लेकिन साथ साथ पुल की लगातार बढ़ती डेडलाइन ने भी जनता की सरकार के प्रति नाराज़गी को जाहिर किया.
कल जब इस ब्रिज निर्माण में आए इतने उतार-चढ़ावों के बाद इसे चालू किया जाना है तब इसके निर्माण में अपने अपने योगदान को तीनों राजनीतिक पार्टीयां बढ़ा चढ़ा कर पेश कर रही हैं . दिल्ली के सारे छोटे बढ़े राजनेता पुल निर्माण का श्रेय लेने में कोई कसर छोड़ते नज़र नहीं आ रहें हैं.
ट्वीटर पर लगातार एक के बाद एक अपलोड हो रहीं ब्रिज के साथ नेताओं की तस्वीरें इसका सबूत हैं कि पुल किसी और ने नहीं बल्कि इन्हीं नेताओं ने बनाया है.