राफेल डील से संबंधित चार याचिका सुप्रीम कोर्ट के सामने है। इसमे से एक याचिका ऐडवोकेट प्रशांत भूषण, पूर्व मंत्री अरुण शौरी व यशवंत सिन्हा की भी है।

31 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में इन याचिकाओं पर सुनवाई की। कोर्ट ने केंद्र सरकार से दस दिनों के भीतर सील बंद लिफाफे में राफेल विमान की कीमत और उसके डिटेल जमा करने को कहा है।

हालांकि कोर्ट ने ये भी कहा है कि अगर सरकार को लगता है कि कोई जानकारी गोपनीय है तो वह उसे याचिकाकर्ता को देने से मना कर सकती है। इस मामले में अगल सुनवाई 14 नवंबर को होनी है।

लेकिन उससे पहले ही कुछ मीडिया संस्थान सुत्रों के हवाले से बता रहे हैं कि केंद्र सरकार राफेल से जुड़ी जानकारी सुप्रीम कोर्ट को नहीं देगी।

तो क्या सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस देश के लिए खतरा हैं?

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की बैंच ने जब ये कहा कि सरकार राफेल विमान सौदे की कीमत एक सीलबंद लिफाफे में कोर्ट को सौंप दे, जिसे वे किसी को नहीं देंगे। ये सिर्फ न्यायाधीशों के लिए होगा, तो सरकारी वकील ने कहा कि ये संभव नहीं है। इसके पीछे सुरक्षा कारण बताए जा रहे है।

इस सौदे के बारे में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को जानकारी होने से भी अगर देश को खतरा है तो फिर देश कौन है?

अजित डोभाल?
नरेंद्र मोदी?
अमित शाह
अनिल अंबानी?

सिर्फ कीमत पूछ रहे हैं। ये नहीं कि विमान में क्या टेक्नोनॉजी लगी है। इससे देश की सुरक्षा को खतरा कैसे है?

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