योगी सरकार की पुलिस को अचानक ऐसा लगने लगा है कि खुले में नमाज पढ़ने वाले मुस्लिमों से साम्प्रदायिक सौहार्द बिगड़ सकता है। नोएडा सेक्टर-58 के थाना निरीक्षक पंकज राय ने एक नोटिस जारी किया गया। इस नोटिस में सेक्टर-58 में स्थित कंपनियों से कहा गया है कि वो अपने मुस्लिम कर्मचारियों को पार्क में नमाज न पढ़ने दें।

नोटिस में लिखा है ‘सेक्टर-58 स्थित अथॉरिटी के पार्क में प्रशासन की ओर से किसी भी प्रकार की धार्मिक गतिविधि ‘जिसमें शुक्रवार को पढ़े जाने वाली नमाज शामिल है’ की अनुमति नहीं है। अक्सर देखने में आया है कि आपकी कंपनी के मुस्लिम कर्मचारी पार्क में इकट्ठे होकर नमाज पढ़ने के लिए आते हैं। उन्हें एसएचओ की ओर से मना किया जा चुका है। उनके द्वारा दिए गए नगर मजिस्ट्रेट महोदय के प्रार्थना पत्र पर किसी भी प्रकार की कोई अनुमति नहीं दी गई है।’

अब सवाल उठता है कि सप्ताह में एक बार 20 मिनट के लिए पार्क में नमाज पढ़ने से प्रशासन को क्या परेशानी है? जब पहले कभी उस पार्क में नमाज पढ़ने से साम्प्रदायिक सौहार्द नहीं बिगड़ा तो यूपी पुलिस को अचानक ऐसा क्यों लगने लगा है कि अब खुले में नमाज पढ़ने से माहौल खराब हो सकता है?

क्या यूपी पुलिस के पास उस क्षेत्र का कोई ऐसा कोई रिकॉर्ड है जिसके आधार पर ये नोटिस जारी किया गया है? क्या पहले कभी उस क्षेत्र में पार्क में शुक्रवार की नमाज पढ़ने से साम्प्रदायिक सौहार्द बिगड़ा है? अगर पुलिस के पास ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है तो क्या सिर्फ आशंका के आधार पर ऐसे फैसले थोपा जा रहा है?

क्या ये फैसला पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर लिया गया है? या फिर ये फैसला जानबूझकर जनता को एक नयी बहस में उलझाने के लिए बहुत ही सोच समझकर लिया गया है? जैसे- हनुमान की जाति, राम मंदिर का शिगूफा… आदि

नोटिस में कुछ ऐसा भी लिखा है जो संदेह पैदा करता है। कंपनियों को हिदायत के लहजे में दिए इस नोटिस के दूसरे भाग में लिख है ‘आपसे यह उम्मीद की जाती है कि आप अपने स्तर पर अपने मुस्लिम कर्मचारियों को अवगत कराएं कि वे नमाज पढ़ने के लिए पार्क में न जाएं। यदि आपकी कंपनी के कर्मचारी पार्क में आते हैं तो यह समझा जाएगा कि आपने उनको इसकी जानकारी नहीं दी है। इसके लिए कंपनी जिम्मेदारी होगी।’

नोएडा पुलिस द्वारा जारी नोटिस

पुलिस साफ कह रही है कि अगर कोई बाहर नमाज पढ़ता नजर आया तो इसके लिए वहां के कंपनी मालिकों और अधिकारियों पर कार्रवाई होगी। क्या इसका मतलब ये समझा जाए कि पुलिस हिदायत दे रही है कि कंपनी मुस्लिमों को अपने यहां काम न दें?

क्योंकि आमतौर पर ज्यादातर मुस्लिम शुक्रवार की नमाज पढ़ते ही हैं। ऐसे में कंपनी मालिक के पास दो विकल्प है या तो वो उन्हें कंपनी के अंदर नमाज पढ़ने की जगह दें या नौकरी ही न दें। नोएडा जैसी महंगी जगह जहां ऑफिस का रेंट लाखों में होता है वहां कंपनियां नमाज पढ़ने के लिए अलग से जगह भला कैसे दे सकती हैं?

नमाज़ की पाबंदी लगाए जाने पर UP पुलिस पर भड़के ओवैसी, कहा- कांवड़ियों पर फूल बरसाते हो और नमाज़ियों से दिक़्क़त है?

खुले में नमाज को लेकर विवाद नोएडा से पहले गुरूग्राम में देखने को मिला था। अप्रैल 2018 में बीजेपी शासित हरियाणा के गुरुग्राम में शुक्रवार की नमाज अदा कर रहे मुस्लिमों पर हिंदूवादी संगठनों ने हमला कर दिया था। तब पुलिस ने इस मामले में कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया था। उसी वक्त लैंड जिहाद जैसी खोखली बहस को भी पैदा दिया गया था। खैर, इस घटना के बाद गुरुग्राम में कई और ऐसी घटनाएं घटीं।

फिर सीएम खट्टर का बयान आया की खुले में नमाज पढ़ने की जरूरत क्या है? बात सही भी है लेकिन मस्जिद ना होनी कि स्थिति में मुस्लिम समुदाय क्या करे? जैसे हिंदू समुदाय जगह की कमी को वजह से सड़क जाम करके पूरी रात फुल वॉल्यूम में जागरण करने को मजबूर है, जैसे जगह की कमी के कारण कावड़ियों और गणेश विसर्जन वाले सड़क जाम करने को मजबूर हैं, वैसे ही मुस्लिम समुदाय भी मजबूर है।

ऐसे में या तो सभी के लिए जगह सुनिश्चित की जाए या सार्वजनिक जगह पर हर तरह के धार्मिक आयोजनों पर पूरी तरह पाबंदी लगाई जाए। हालांकि धर्म निजी मामला इसके लिए इंतजाम भी लोगों को खुद ही करना चाहिए, और ऐसा इंतजाम करना चाहिए जिससे दूसरों को असुविधा न हो।

साफ शब्दों में कहे तो धार्मिकता का खुला प्रदर्शन मुसीबत पैदा करता ही है। चाहे वो मोहर्रम का जुलूस हो, या शबे बारात के हुड़दंग, या गणेश विसर्जन, या कांवड़ियों की लंपटई, भर रात फुल वॉल्यूम जागरण। लेकिन इसका ये मतलब कतई नहीं है कि राजनीतिक दबाव या पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर किसी विशेष धर्म को निशाना बनाया जाना सही है।

नोएडा पुलिस की इस नोटिस में निष्पक्षता का भाव बहुत ही कम नजर आ रहा है। नोटिस में जहां एक तरफ ‘किसी भी प्रकार की धार्मिक गतिविधि’ पर पाबंदी की बात लिखी गई हैं। वहीं दूसरी तरफ शुक्रवार की नमाज को फोकस में रखा गया है। अगर सभी प्रकार की धार्मिक गतिविधियों पर रोक की बात है तो नमाज को फोकस में रखने की क्या जरूरत थी? मुस्लिम कर्मचारियों के जिक्र की क्या जरूरत थी?

ख़ैर, नोटिस के अंत तक ये बात क्लियर हो जाती है कि नोटिस सिर्फ मुस्लिमों के नमाज के लिए ही जारी किया गया है। वैसे बता दें कि ये वही यूपी पुलिस है जो हुड़दंगी कांवड़ियों पर फूल बरसाती लेकिन अब शांति से की जाने वाली प्रार्थना पर भी पाबंदी लगा रही है।

पूरे महीने चलने वाले कांवड़ यात्रा के कान फाड़ू DJ से यूपी पुलिस को कोई परेशानी नहीं होती। बकायदा सड़क की एक लेन कांवड़ियों को लिए खाली करा दी जाती है। 10-10 दिन के लिए रूट डायवर्ट कर दिया जाता है। इसकी वजह से भयंकर जाम भी लगता है। जिस सड़क के लिए सभी नागरिकों ने टैक्स भरा होता है उस सड़क पर कुछ दिनों के लिए कांवड़ियों का कब्जा हो जाता है।

इस साल तो कांवड़ियों ने UP पुलिस पर पत्थर भी बरसाया और हाथापाई भी लेकिन फिर भी पुलिस ने कांवड़ियों पर हेलीकॉप्टर से फूल बरसाया। क्या ये UP पुलिस का दोहरा चरित्र और बहुसंख्यकवाद नहीं है?

नोएडा पुलिस की इस नोटिस पर वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने आपत्ति जताई है। दिलीप मंडल ने फेसबुक पर लिख है ‘पार्क में सातों दिन लाठी लेकर शाखाएँ लग सकती हैं, वंचित जातियों और अल्पसंख्यकों से नफ़रत करना सिखाया जा सकता है, लेकिन हफ़्ते के एक दिन दस मिनट तक चलने वाली नमाज़ नहीं हो सकती, जिसमें छड़ी तक नहीं होती?

मुझे नहीं लगता कि योगी सरकार का इस तरह आग मूतना हिंदुओं को भी अच्छा लगेगा। किसी भी न्याय प्रिय इंसान को ये पसंद नहीं आएगा।’

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